Book Title: Narmada Sundarino Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 171
________________ (१६ए) ॥ ढाल पन्नमी॥ नटीयाणीना गीतनी अथवा सुरती प्यारी लागे जिनजी ताहरी ॥ए देशी॥ धनदत्तने एम नांखे हो, व्यवहारी रूपें देवता ॥ रे नाक मतिहीन, प्रथ मज तुं जुलवाणो हो, तेह तो तुं नथी शोचतो, कां न संजारे दीन ॥ धम् ॥१॥ हूं तो जोगी व यणे हो, रयण वली श्राव्यो वाववा ॥ तो तें वास्यो मूळ ॥ वाडवनी तुं शीखें हो, जे एम वनमा रड बडे, तो कुण वारशे तुऊ ॥ध ॥२॥ तुजने जे को तातें हो, नोबुडा वचन का हतुं, न कयुं तें नि र्वाह ॥ बांजणनां वचनथी हो, धूताणो एम नूलो जमे, हजीय नथी लाजतो थाह॥ध॥३॥ ते माटें कहुं तुजने हो,धनदत्तजी जुडं ममानशो, कहे वाये ए रूढ ॥ हुँ नोलवाणो केहवो हो, नोलवाणो तुं ए विप्रथी, मूढ हुँ किंवा तुं मूढ ॥ ध० ॥४॥ पर उपदेशें माह्यो हो, ते कारण तुने हुँ कहुं॥ जो तुं संजाली पूंछ॥जे कां तुक पागल हो, विण पूब्ये जे में उपदिश्यु, ए साचूं के जूठ ॥ ध० ॥५॥ में तो जोगीवचने हो, प्रहमांहि रत्न जे वोसयां ॥ पण तुं विचारी जोय ॥ वाडवना कह्याथी हो, तें Jain Educationa International For Personal and Private Use Only ___www.jainelibrary.org

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