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( १५७ )
मानव हो, कोडि न पावे ॥ मा० ॥ साहमा सधनी हो कोडि उपावे ॥ मा० ॥ निर्धन नरने हो, कोइ न धीरे ॥ मा० ॥ धनने खादर हो, सहु को नदी रे ॥ ॥ मा० ॥ १२ ॥ उरगकलेवरहो, कोथी होवे ॥मा०॥ पण निर्धनने हो, कोइ न जोवे ॥ मा० ॥ पुरुष वि भूषण हो धन कहेवाये ॥ मा० ॥ प्रभुता विजुता हो धनी थाये ॥ मा० ॥ १३ ॥ धन बिदु अक्षर हो, पण गुण मोटो || मा० ॥ धनवंत साचो हो, बीजो खोटो | मा०॥ प्रभु निर्द्रव्ये हो एकज पूजा ये ॥ मा० ॥ पण नर बीजो हो द्रव्य सराये ॥ मा० ॥ १४ ॥ पूरवपुण्ये हो, तुं धन पायो ॥ मा० ॥ राखी न जाणे हो, कोय ठगायो ॥ मा० ॥ देतां न कहे हो, कोइ नाकारो ॥ मा०॥ धन सहु वांबे हो, आप पियारो ॥ मा० ॥ १५ ॥ मित्र विणो हो, इम कुण कदेशे ॥ मा० ॥ रूडुं मुंडं हो, तुं निर्वदेशे ॥ मा० ॥ मारी शिक्षा हो, धनदत्त मानो ॥ मा० ॥ एम कही वाडव हो, रहियो बानो ॥मा० ॥ १६ ॥ धनदत्त मनमां हो, एम विचारे ॥ मा० ॥ दान देयंतो हो, कोइ न वारे ॥मा०॥ जांखी रूडी हो, ढाल बावनमी ॥ मा० ॥ मोहन विजयें हो, विनवत अनमी ॥ मा० ॥ १६ ॥
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