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(१६६) एम जावियो। हो ॥ तो ॥॥ बेसो हां विश्राम, करीने जाय जो ॥ हो॥ क०॥ वचन उलंघी मुफ, गमार न थाय जो होगा धनदत्त तास वचन, रह्यो धीरज धरी॥होर॥ जो जो विबुधे ताम, विबुधता शी करी हो॥ वि०॥॥ धनदत्त देखे तेम,सुरेश्वरहित धरी॥हो॥सुनाखी अह मांहि रयण, अंजलि नरी नरी॥होगाअंग॥ एम असमं जस देखी, कहे धनदत्त इस्युं ॥होणाकणारे व्यव हारी ए काम, करे जे तुं किस्युं॥होगाकण॥ ए ॥ दे खी पेखी रयण, अहे केम नाखीयें ॥ हो ॥ १०॥ सुख उःख अव्यने .काज, सवे हुं सांखीए ॥ हो ॥ सम् ॥ के को प्रेत विशेष, थयो जे तुक ने ॥ हो ॥ थ० ॥ जे कांश हृदयमें वात, हवे ते कहो मुझने ॥ हो॥ह ॥ १० ॥ बोलोडो माह्यां वेण, करो कां ग्रथलता हो ॥ कण्॥ उपहासीथी केम, तमे नथी बीहता ॥' हो ॥ त ॥ तव सुर बोल्यो एम, वचन रचना करी ॥ हो ॥ व० ॥रे पंथी वड वीर, कहुं तुऊ हित धरी ॥ हो ॥ का ॥ ११॥ हुं बुं सारथवाह, रयण संग्रह घणो ॥ हो। ॥ र ॥ एक डे माहरे मित्र, योगीं सोहामणो
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