Book Title: Narmada Sundarino Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 163
________________ ( १६१ ) ॥ दोहा ॥ एक दिन वनमां चालतां, तृषावंत धनदत्त ॥ मि त्रकने मागे तिहां, पय पीवाने ऊत्त ॥ १ ॥ मित्र कहे इहां बेश्य तुं, हृदय धरीने धीर ॥ वनमांहें सरवर थ की, लेइ श्रावुं हुं नीर ॥ २ ॥ बेसाडी धनदत्तने, कोक तरुवर बांहि ॥ विप्र मित्र जल कारणे, गयो गहन वनमांहि ॥ ३ ॥ न मिल्युं जल ते विप्रने, चिंते मनमां ते एम ॥ विण पाणी निज मित्रने, वद न देखाडुं केम ॥ ३ पूलथी धनदत्त हवे, मित्र त णी जोइ वाट ॥ जल नाव्यं दीतुं तेणे, चिंते हृदय निपाट ॥ ५ ॥ हलूये उठ्यो तिहां थकी, एकाकी धनदत्त ॥ वनमांहे मूलो जमे, जिम करिवर उन्मत्त॥६॥ ॥ ढाल चोपन्नमी ॥ मृजरो ब्योने जालिम काटणी ॥ ए देशी ॥ धन दत्त जोलो जी वनमां नमे, करवा विप्रनी शुद्धि ॥ तुमें फल जो जो नीचसंगति तणां ॥ ए यांकणी ॥ संगति नीचनी होये अलखामणी, प्राये निर्धन नि बुद्धि ॥ तु० ॥ १ ॥ वनमें पारधीया खेटक रमे, बा ना मांडीने फंद ॥ ताणे बाण ते मृगवध कारणे, बेठा ते मतिमंद ॥ तु० ॥ २ ॥ मृग पण श्राव्या तृण चं For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org ११ Jain Educationa Intemational

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