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(७) नहीं, ते विरलो संसार ॥ पण शहां प्रेम किशो करे, जीहां कृतकर्म प्रसार ॥६॥
॥ ढाल उंगणत्रीशमी॥ __ कोई आण मेलावे साजनां ॥ ए देशी ॥ हो उठी नमया सुंदरी, सायर तटथी एह हो॥ श्रावी क दली वन्नमां, दीवू सरोवर तेह हो॥१॥ शील स खा होश्शे, एहने वनह मकार हो ॥ मलशे वाह लां मानवी, होशे जयजयकार हो॥शी॥२॥ बेठी सरोवरने तटे, हियडे खटके शाल हो ॥ इहां पर हरीगयो पियुडो,आण्यु कां न वाल हो॥शी॥३॥ एह कदलीना गेहमां, रहेता लागे बीक हो॥पहेली गिरिकंदरी,दीसे दे नजीक हो ॥शी॥॥ तजी सर वर ग्रही कंदरा, पेसी लीधो विश्राम हो ॥ निर्मल जलें नरी नानडी, मुख पखाव्युं ताम हो ॥ शी। ॥५॥जे वनफल नूंई पड्यां, ते लेइ कीध आहा र हो ॥ पवित्रपणे शुरु चित्तथी, ध्यान धरे नव कार हो ॥ शी० ॥ ६ ॥ एहज मंत्र प्रनावथी, श्र हि थयो फूलनी माल हो ॥ कुष्ट गयो जपतां थकां, पाम्यो सुख श्रीपाल हो॥शी ॥७॥ शिवकुमार ए मंत्रथी, जटिलनो पुरिसो कीध हो। जिनदासें
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