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पाधरा रे ॥ सू० ॥ प्रणम्या पुरपति पाय ॥ गो० जे० ॥ १४ ॥ परदेशी व्यापारियो रे ॥ सू० ॥ जा णी नृप दे मान ॥ गो० ॥ श्रदरथी ग्रधुं नेटं रे ॥ सू० ॥ नूपें दीघां पान ॥ गो० ॥ जे० ॥ १५ ॥ कुशला लाप परस्परें रे ॥ सू० ॥ पूढे आणी प्रेम ॥ गो० ॥ पुरमांदे व्यापारनी रे ॥ सू० ॥ मागी आणा तेम ॥ गो० ॥ जे० ॥ १६ ॥ प्रणमी नृप नमयापिता रे ॥ सू० ॥ श्राव्यो आपणे ठाम ॥ गो० ॥ ढाल कही बत्री शमी रे ॥ सू० ॥ मोहने एह अजिराम ॥ गो० ॥ जे० ॥ १७ ॥ सर्व गाथा.
॥ दोहा ॥
वेच्यां नमयाने पिता, करियाणां पुरमांहि ॥ दा म करवा गांठें जला, परखी पारखमांहि ॥ १ ॥ पुर मांहे कीरति थई, नमया जनकनी जोर ॥ एहवो कोण अपत्य बे, जे होये गुण चोर ॥ २ ॥ सुपुरुष जिहां जाये तिहां, पामे आदर मान ॥ नागरवली मान लड़े, जाते तो बे पान ॥ ३ ॥ तृणचर नानि थकी थई, मृगमदनी शी जाति ॥ पण जो गुण बे तेहमें, तो बे जग विख्याति ॥ ४ ॥ नमया तात नि रंतरें, आवे नृप दरबार || बब्बरमा दिन थया
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