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(१०६) माहारा राज ॥ निपट न लोजी थाए पाकणी॥ कहेजो स्वामी मया करो मोसुं, मंदिर करो गज गाह ॥ मा॥१॥ तुमथी जला जला सारथवाह, श्रांगण श्रमचे थायामा॥ दीसो डो तेहथी चतुर घणेरा, फोगट शी करो माया ॥माण ॥॥हकम अजे मूळ नरवर केरो, खेडं तिण दीनार ॥ मा०॥ नहीं तो अमारे घेर कोण आवे, श्रमे गणिका अव तार ॥ मा० ॥३॥ जो तमे माहरे गेह न श्रावो, तो किम लेउ दीनारमा॥ मन माने तो करजो क्रीडा, पण श्रावो एक वार ॥मा॥४॥ वयणथी न होवे मेलो, तस धनें केम मन माने ॥मा०॥रे रे दासी खासी माहरी, एम तुं कहेजे गने॥मा०॥५॥ श्रावी दासी तरत उजाणी, जिहां बेचीवरगेह ॥माण्अहो सार थपति विनति मानो अमथी आणो नेह ॥ मा०॥६॥ मूळ उकुराणी घणुं बुधाणी, तुमढुंती निर्धार ॥ मा० ॥ मंदिरसुधी तो करो करुणा, साथे लेश दी नार ॥ मा॥७॥ वातडीए तो एम मत वाहो, एम केम मूके कोय ॥ मा॥ हे प्रिय प्रेम एम बनी श्रावे, वाते वडा नवि होय ॥मा ॥७॥ जो मन माने तो तिहां रहेजो, पराणे न होवे प्री
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