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( ८ )
महावन्नथी, बीजपूरक फल बीध हो ॥ शी० ॥ ८ ॥ पाम्यां जिल्लने जीडी, मंत्रथी सुरना जोग हो ॥ गगनें उडती कोसली, एहज मंत्रने योग हो । शी० ॥ एए ॥ हवे ते नमया नारीने, पीयु विण दीरघ दीह हो ॥ वरस जीसी थाये घडी, उपनी एहवी एह हो ॥ शी० ॥ १० ॥ निशि वासर नेही विना, होवे ति प्रलंब हो ॥ पूजूं जिन जेम सांजले, इहां कोइ जो लाने बिंब हो ॥ शी० ॥ ११ ॥ गिरिवरमें नम या जमे, घणी कीधी तलास हो || तोही पण जिन राजनी, मूरत न मली तास हो ॥ शी० ॥ १२ ॥ फि रिपाठी गइ कंदरा, माटी जल लेइ हाथ हो ॥ मन मानीतो तेहनो, निपायो जगनाथ हो ॥ माटी त यो निपजावियो, नानकडो प्रासाद हो ॥ तेहमां प्रभु पधरा विया, गाती सुकंठें नाद हो ॥शी ॥ १३ ॥ स्थाप्युं नाम युगादिनुं, हरखी घणुं मनमांद हो || वनफल वनमां फूलडों, ढोके नित्य सोत्साह हो ॥ शी० ॥ १४ ॥ जावें जावे जावना, कहे हो जिन अनु कूल हो ॥ माहरा नाह तणी परें, रखे होता प्रतिकूल हो ॥ शी० ॥ १५ ॥ जो बे करुणा ताहरी, तो बे मं गल माल हो ॥ मोहन विजयें जली कही, जंगण
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