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त्रीशमी ढाल हो
( एव )
॥ शी० ॥ १६ ॥ सर्व गाथा ॥ ॥ दोहा ॥
वीतरागने विनवे, देव शिरोमणि देव ॥ ए वनमां पामूं किहां, तुम पद पंकज सेव ॥ १ ॥ मीठी कूई कर चढी, खारा दरीया मद्य ॥ ए वेलाए तुं मध्यो, परम सनेही मुद्य ॥ २ ॥ मात पिता बांधव स्वसा, ससरो सासू कंत ॥ दुःखमांहि होय वेगलां, एक तुं सखाइ जगवंत ॥ ३ ॥ तुं करुणानिधितुं विबुध, तु ज गुण अपरंपार ॥ नव सायरमां बतां, तुज पद पद्म आधार ॥ ४ ॥ एम जन्म सुकियारथो, करती नमया नित्य || मूथी लही वनफल जमे, धरती ता पस वृत्ति ॥ ५ ॥ वस्त्र तणी बांधी धजा, दरी उई बहु वान ॥ काननमें नमयासुंदरी, एम करे गुजरान ॥६॥ ॥ ढाल त्रीशमी ॥
देशी वीडीयानी ॥ हांरे लाल नमया सुंदरीनो पि ता, निज नयरथी चढीयो जहाजरे लाल || सिंहल द्वीपनी साहमो, सुंदर व्यवसायनें काज रे लाल ॥ १ ॥ हुं बलिहारी रे शीलनी, नहि शीलसमो जग कोय रे लाल || जेह थकी वनमें इहां, मनमेल मेलो होय रे लाल || हुं० ॥ २ ॥ हां० ॥ प्रवहण तरतां नीरमें,
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