________________
( ए१ ) ते पाम्यां निशाचर द्वीप रे लाल ॥ नमया तातें रे पोतने, सायर तटे राख्यां बीप रे लाल ॥ हुं० ॥ ३ ॥ हां० ॥ प्रवहण हुंती उतयां, जल इंधण लेवा लोक रे लाल ॥ सायरतटे नमया पिता, बेठो तिहां विटाइ लोक रे लाल || हुं० ॥ ४ ॥ ० ॥ दीधुं क दलीवन तिहां, लगायी नयणे तेण रे लाल ॥ जोवा कारण संचस्यो, एकलो न जाणे कोण रे लाल || हुं ॥२॥ हां ॥ दीगं तेणें धरणी तलें, वनितानां पग लां गोण रे लाल ॥ चिंते इहां ए वनमां, रहेती दशे नारी कोण रे लाल || हुं० ॥६॥ हां० ॥ दी से बे पग लां तुरतनां, हमणां गइ दीसे बे नारी रे लाल ॥ होशे को वियोगिणी, अथवा किन्नरी अनुहार रे लाल || हुं० ॥ ॥ हां। एम चिंती ऊतावलो, चाल्यो नमयानो तात रे लाल ॥ कदलीवन मूकी करी, गयो कुंगर निकट विख्यात रे लाल || || हां०॥ तिहां एक तेथे दीठी धजा, फरहरती पवन प्रका श रे लाल || जाएं सही इहां कोश्नो, रहेवानो दी से बे वासरे लाल || हुं हां॥ वि म कोइना, मंदिरमांहे दीजे पाय रे लाल ॥ ह्यानी एह रीत बे, विणतेडे की मही न जवाय रे
जाये के
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org