________________
(७) ग्यो महेश्वरदत्त तेहवे रे लो॥श्रालस मोडवा ऊम ह्यो रे लो, तेहवे सायरमां पड्यो रे लो॥१२॥ पड तां जलथी श्राफल्यो रे लो, मगरें ततकण ते गल्यो रे लो॥ केतेक दिन मत्स्य ऊबल्यो रे लो, रूपचंड पुरें नीकट्यो रे लो॥ १३॥ धीवरे तास नीहालियो रे लो, ततक्षण उदर विदारीयो रे लो ॥ तेमांहेथी महेश्वरदत्त नीकल्यो रे लो, धीवरे नृप आगल तेध स्यो रे लो॥ १४॥ उलख्यो लोकें एहवे रे लो, स ज कस्यो नृपे तेहने रे लो॥ श्रागंबरे घेर मोकट्यो रे लो, कुटुंब मनोरथ त्यां फल्यो रे लो ॥१५॥ ढाल कहि पचवीशमी रे लो, मोहनने मनमें गमी रे लो॥ हवे नमया सुंदरीतणी रे लो, वात कडं मीठी घणी रे लो॥ १७ ॥ सर्व गाथा.
॥दोहा॥ जागी नमया सुंदरी, तिणी वनमें तेवार ॥ जोयु पण दीगे नहीं, पासे निज जरतार ॥१॥ ऊठी अंबर सज करी, दीधो पियुने साद ॥ पागे कोई बोल्यो नहीं, तब हुई विषाद ॥ ॥ केम नवि दीधो नाहले, प्रत्युत्तर मुफ हेव ॥ सही प्रबन्नरह्यो हशे, हांसीनी टेव ॥३॥ नमया उंच खरें करी
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org