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(४२) को बीजो पदारथ न नीरख्यो रे ॥ स ॥ में श्र तिहीं कस्यो अविचास्यो, जे जैनधर्मने निवास्यो रे ॥ स० ॥ १४ ॥ मुक माता पिता जो ए लहेशे, तो कांगें कांश कहेशे रे ॥ स० ॥ नहीं रही होय वात ते बानी, थर गइ होशे कांना कानी रे ॥ स०॥ १५ ॥ सही नाखशे पितर ते बाढी, मूने पत्र सटितपरि काढीरे ॥ स० ॥ में रे कर्म कस्यां शां पहेला रे, थ धर्मथकी अलगी वहेला ॥ स ॥ ॥ १६ ॥ गुणहीन कुटिल अटारी, मुफ सरिखी नहिं को नारी रे ॥ स ॥ ए तेरमी ढाल सवार, कहे मोहन विजय बना रे॥ स० ॥ १७ ॥
॥ दोहा ॥ ऋषिदत्ता करकमल पर, स्थापी वर मुखचं ॥ नीर टबके नेणथी, जे पुराणे संज॥१॥ रुरुदत्त दीठी एहवे, श्राव्यो नारी नजीक ॥ लांखे किम तुम नामिनी, नूतल वली हो लीक ॥२॥ उंचुं जूठे अंगना, निरखो नीबूं केम ॥ दीसे वे मुख दा हडे, शशीकर उदयो जेम ॥ ३ ॥ तव बोली तरुणी तिसे, रे रे पियु प्राणेश ॥ अंगज सुंदर आपणो, पाम्यो यौवन वेश ॥४॥ मुफ बांधवने बालिका,
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