Book Title: Mruganka Charitram
Author(s): Ruddhichandraji
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 4
________________ मृगांक // 3 // ___ अर्थः-वळी ते नगरी बगीचाओथी, अढारे वर्णथी, स्त्रीओथी, वक्ताओथी, हस्तिओथी, घोडाथी, वणिकोथी, || मुनिवृंदोथी अने वैद्योथी अत्यंत शोभती हती. // 7 // कयुं छे केवापीवप्रविहारवर्णवनिता वाग्मी वनं वाटिका, वैद्यो विप्रकवारिवादिविबुधा वेश्या वणिग् वाहिनी। विद्या वीरविवेकवित्तविनया वाचंयमा वल्लिका, वस्त्रं वारणवाजिवेसरवरं राज्यं च वैः शोभते // 8 // ____ अर्थ:-चाव, किल्ला, बाग, अढारे वर्ण, स्वीओ, वक्ता, वन, वाडी, वैद्य, विम, जलाशयो, पंडितो, वेश्या, वणिक्, सेना, विद्या, वीर, विवेक, धन, विनय, मुनिवर, नटीओ, वस्त्र, हाथी, घोडा, खच्चर विगेरेथी राज्य शोभे छे. // 8 // राज्यं चकार तस्यां सद् मकरध्वजभूपतिः / रूपेण जितकन्दर्पः प्रताप्राकान्तभास्करः // 9 // ' अर्थः-त्यां प्रतापे करीने दबावेलो छे सूर्यने जेणे, अने रुपे करीने कामदेवने जीत्यो छे जेणे एवो मकरध्वज नामे राजा राज्य करतो हतो. // 9 // न्यायवल्लीपयोवाहः कामधार्थतत्परः / विशुद्धकुलसम्भूतः शस्त्रशास्त्राब्धिपारगः // 10 // अर्थ:-ते राजा न्यायरुपी वेलडीने पोषण करवामां मेघसमान, धर्म अर्थ अने काममा तत्पर, विशुद्ध कुळमां उत्पन्न | || थयेली अने शस्त्र तथा शास्त्ररूपी समुद्रनो पारंगत हतो. // 10 // // 3 // P.P. Ac Giratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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