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किंचित प्रस्ताविक
बहुत बड़ा ग्राकाश पाताल जितना अन्तर दिखाई देता है । अब तो उस साधु सम्प्रदाय में भी विद्याध्ययन का बहुत प्रचार हुआ है। | अनेक स्थानकवासी साधु संस्कृत, प्राकृत के अच्छे ज्ञाता और विद्वान है । उनमें अनेक नवीन पद्धति के ग्रंथ आदि लिखने वाले भी अच्छे लेखक साधु है । अनेक प्रभावशाली प्रवक्ता भी है । और समयानुसार विविध प्रकार की धार्मिक, सामाजिक, शैक्षणिक और साहित्यिक प्रवृतियों में भी विशिष्ट भाग लेने वाले है । इनमे कई साधुनों के भाचार और विचार में भी बहुत परिर्वतन होता हुआ दिखाई दे रहा है ।
वर्तमान देशकाल के अनुरूप कई परिवर्तन ऐसे भी लगते है जिनका शायद जैन साधु के वास्तविक आचार के साथ कोई सम्बन्ध नहा रहा है ।
यहां तक कि हाल ही में एक बहुत बड़े प्रतिष्ठित श्रमण साधुवर्य प्रोघा और मुंहपति स्वरुप साधु वैष के विशिष्ट चिन्ह को धारण किये हुए, आकाश यान द्वारा पृथ्वी की प्रदक्षिणा भी की । ऐसा सुना गया है कि उन्होंने अमेरिका में विश्व के राष्ट्रसंघ जैसी महत्ती सभा में भी उपस्थित होकर भगवान महावीर के सर्वोत्कृष्ट त्यागमय जीवन का परिचय कराया तथा स्वयं को महावौर के अनुयायी साधु श्रेष्ठ श्रमण धर्म के कठोर आचारपालक के रूप में प्रत्यक्ष दिग्गदर्शन कराया
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साधु जीवन की ऐसी नूतन चर्या को सुनकर मैंरे जैसे अत्यल्प मति वाले मनुष्य के मन में सहसा संस्कृत भाषा की उस प्रसिद्ध उतिका स्मरण हो प्राया जो कहती है कि
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किमाश्चर्य मतः परम ?
परम निर्ग्रथ श्रमण भगवन महावीर प्रबोधित निर्ग्रथनामवारी श्रमण कहलाने वाले साधु के साधु जीवन में इससे बढ़कर और क्या परिवर्तन हो सकता है ?
इससे में मानता हूं कि मेरे जीवन के अनुभव में आने वाले उप अविकसित क्षुद्र काल: मय दशक के बाद बोत जाने वाले छः दशाब्दों में देश के समग्र राष्ट्र जीवन में प्राचार और विचारों का जा विलक्षण परिवर्तन हुआ है, उसी के अनुरूप जैन साधुयों के प्राचार और विचारों में भी विलक्षण परिवर्तन होने जा रहा है । भव अनेक बड़े-बड़े साधु बड़ी-बड़ी सभाओ का आयोजन करवाते हैं । ऐसी बड़ी सभाओं में वे स्वयं जाते हैं । अनेक पत्र-पत्रिकाएं तथा पुस्तकें आदि और उनका विमोचन करवाने के लिए प्रसिद्ध राजकीय नेताओं तथा मिनिस्टरों आदि को बुलवाते हैं ।
वाते हैं
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