Book Title: Mandir Vidhi
Author(s): Basant Bramhachari
Publisher: Akhil Bharatiya Taran Taran Jain Samaj

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Page 13
________________ १३ जिन दिस्टि इस्टि संसुद्ध, इस्टं संजोय तिक्त अनिस्टं । इस्टं च इस्ट रूवं, ममल सहावेन कम्म संषिपनं ॥ १७ ॥ अन्यानं नहु दिस्टं, न्यान सहावेन अन्मोय ममलं च । न्यानंतरं न दिस्टं, पर पर्जाव दिस्टि अंतरं सहसा ॥ १८ ॥ अप्पा अप्प सहावं, अप्पा सुद्धप्प विमल परमप्पा | परम सरूवं रूवं, रूवं विगतं च ममल न्यानस्य ॥ १९ ॥ विमलं च विमल रूवं, न्यानं विन्यान न्यान सहकारं ।। जिन उत्तं जिन वयनं, जिन सहकारेन मुक्ति गमनं च || २० ॥ षट्काई जीवानं, क्रिपा सहकार विमल भावेन । सत्व जीव समभावं, क्रिपा सह विमल कलिस्ट जीवानं ॥ २१ ॥ एकांत विप्रिय न दिस्टं, मध्यस्थं विमल सुद्ध सभावं । सुद्ध सहावं उत्तं, ममल दिस्टी च कम्म षिपनं च ॥ २२ ॥ सत्वं किलिस्ट जीवा, अन्मोयं सहकार दुग्गए गमनं । जे विरोह सभावं, संसारे सरनि दुष्य वीयंमी ॥ २३ ॥ न्यान सहाव सु समयं, अन्मोयं ममल न्यान सहकारं । न्यानं न्यान सरूवं, ममलं अन्मोय सिद्धि संपत्तं ॥ २४ ॥ इस्टं च परम इस्टं, इस्टं अन्मोय विगत अनिस्टं । पर पर्जावं विलियं, न्यान सहावेन कम्म जिनियं च ॥ २५ ॥ जिन वयनं सुद्ध सुद्धं, अन्मोयं ममल सुद्ध सहकारं । ममलं ममल सरूवं, जं रयनं रयन सरूव संमिलियं ॥ २६ ॥ से स्टं च गुन उववन्नं, से स्टं सहकार कम्म संषिपनं । से स्टं च इस्ट कमलं, कमलसिरि कमल भाव ममलं च ॥ २७ ॥ जिन वयनं सहकारं, मिथ्या कु न्यान सल्य तिक्तं च । विगतं विषय कषायं, न्यानं अन्मोय कम्म गलियं च ॥ २८ ॥ कमलं कमल सहावं, षट् कमलं तिअर्थ ममल आनंदं ।। दर्सन न्यान सरूवं, चरनं अन्मोय कम्म संषिपनं ॥ २९ ॥ संसार सरनि नहु दिस्टं, नहु दिस्टं समल पर्जाव सभावं । न्यानं कमल सहावं, न्यानं विन्यान कमल अन्मोयं ॥ ३० ॥ जिन उत्तं सद्दहनं, सद्दहनं अप्प सुद्धप्प ममलं च । परम भाव उवलब्धं, परम सहावेन कम्म विलयंति ॥ ३१ ॥ जिन दिस्टि उत्त सुद्धं, जिनयति कम्मान तिविह जोएन । न्यानं अन्मोय विन्यानं, ममल सरूवं च मुक्ति गमनं च ॥ ३२ ॥ ॥ इति श्री कमल बत्तीसी नाम ग्रंथ जी श्री जिन तारण तरण विरचितं सम उत्पन्निता ॥

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