Book Title: Mandir Vidhi
Author(s): Basant Bramhachari
Publisher: Akhil Bharatiya Taran Taran Jain Samaj

View full book text
Previous | Next

Page 12
________________ श्री कमलबत्तीसी जी तत्वं च परम तत्वं परमप्पा परम भाव दरसीये । परम जिनं परमिस्टी नमामिहं परम देव देवस्य ॥ १ ॥ जिनवयनं सद्दहनं, कमलसिरि कमल भाव उववन्नं । अर्जिक भाव सउत्तं, ईर्ज सभाव मुक्ति गमनं च ॥ २ ॥ अन्मोयं न्यान सहावं, रयनं रयन सरूव विमल न्यानस्य । । ममलं ममल सहावं, न्यानं अन्मोय सिद्धि संपत्तं ॥ ३ ॥ जिनयति मिथ्याभावं, अन्रित असत्य पर्जाव गलियं च गलियं कुन्यान सुभावं विलयं कम्मान तिविह जोएना ॥ ४ ॥ नंद अनंदं रूयं चेयन आनंद पर्जाव गलियं च I म्यानेन न्यान अन्मोयं अन्मोयं न्यान कम्म षिपनं च ॥ ५ ॥ कम्म सहावं षिपनं, उत्पत्ति षिपिय दिस्टि सभावं । चेयन रूव संजुत्तं, गलियं विलयंति कम्म बंधानं ॥ ६ ॥ मन सुभाव संधिपनं संसारे सरनि भाव विपनं च । ७ ।। न्यान बलेन विसुद्धं, अन्मोयं ममल मुक्ति गमनं च ॥ वैरागं तिविह उदन्नं जनरंजन रागभाव गलियं च । कलरंजन दोस विमुक्कं मनरंजन गारवेन तिक्तं च ॥ ८ ॥ दर्सन मोहंध विमुक्कं रागं दोसं च विषय गलियं च । , ममल सुभाव उवन्नं, नंत चतुस्टय दिस्टि संदर्स ।। ९ ।। तिअर्थ सुद्ध दिस्टं, पंचार्थ पंच न्यान परमिस्टी । पंचाचार सुचरनं संमत्तं दर्सन न्यान सुचरनं गुरं च परम गुरुवं जिनं च परम जिनयं सुद्ध म्यान आचरनं ॥ १० ॥ देवं च परम देव सुद्धं च । धर्म च परम धर्म सभावं ॥ ११ ॥ न्यानं पंचामि अषिरं जोयं । , , , ममल सुभावेन सिद्धि संपत्तं ॥ १२ ॥ चेयन आनंद सहाव आनंद | न्यानेन न्यान विधं चिदानंद चिंतवनं कम्म मल पयडि षिपनं ममल सहावेन अन्मोय संजुत्तं ॥ १३ ॥ अप्पा परु पिच्छन्तो पर पर्जाव सल्य मुक्तानं । न्यान सहावं सुद्धं, सुद्धं चरनस्य अन्मोय संजुत्तं ॥ १४ ॥ अबंभं न चवन्तं विकहा विसनस्य विषय मुक्तं च । जिन वयनं च सहावं, जिनियं अप्पा सुद्धप्पानं, परमप्पा न्यान सहाव सु समयं समयं सहकार ममल अन्मोयं ।। १५ ।। मिथ्यात कषाय कम्मानं । ममल दर्सए सुद्धं ॥ १६ ॥ ,

Loading...

Page Navigation
1 ... 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 ... 147