Book Title: Mahavira Charitam
Author(s): Gunchandrasuri
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund

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Page 632
________________ पहिडिओ य राया सोचेमं से गो समीवंमि । अचंतविम्हियमणो सणियं भणिउं पवत्तो य ॥२॥ भो कहसु पढियगाहापरमत्थं तेण जंपियं सुहय!। रायविरुद्धकहाए तीए कि मज्झ कहियाए? ॥३॥ रन्ना युत्तं सच्चं एवमिमं किं तु एत्थ एगंते । साहिजंतीएवि हु न कोऽवि दोसो अओ कहसु ॥ ४॥ तो तेण समग्गो नयरतरुणिविसओ कुमारवृत्तंतो। चोरोवदवसहिओ कहिओ सिवभद्दनरवइणो ॥ ५॥ । अह तं निसामिऊणं पलयानलभीमकोवरत्तच्छो । आबद्धभडभिउडी राया एवं विचिंतेइ ॥६॥ अहह ! महंतमकजं पावेण सुरण मज्झ आयरियं । हरिणकनिम्मलंपि हु कुलमेवं मइलियं जेण ॥ ७॥ ता किं अहुणचिय कंधराए धरिऊण तं महापावं । निद्धाडेमि पुराओ? किं दुबयणेहिं तजेमि ? ॥८॥ अहवा मंतीहिं समं सम्मं वीमंसिऊण तस्सुचियं । पकरेमि जेण सहसा कयाई दूति कज्जाई ॥९॥ इय चिंतिऊण राया गओ निययभवणं, पसुत्तो सुहसेज्जाए, जाए य पभायसमए वाहराविया मंतिणो, सिहो । य तेसि रयणिवृत्तंतो, मंतीहिं भणियं-देव ! अम्हेहिं पुर्वपि कुसमायारवत्ता निसामिया आसि, परं न कोऽपि सो अवसरो जाओ जत्थ तुम्ह कहिज्जइ, रना जंपियं-होउ ताव समइकंतत्थविकत्थणेण, संपयं साहेह, किमेवस्स। दंडं निवत्तेमो ?, मंतीहिं वागरियं-देव! अलं दंडेण, एत्तियमेत्तमेव जुत्तं तुम्ह काउं जमेसो निजइ सुसाहुसमीये, हा सुणाविजइ धम्मसत्थाई, पढाविजइ रायनीई, उववेसाविजए विसिट्ठगोहीसु, एवमवि होही एयस्स कुसमायार-1

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