Book Title: Mahavira Charitam
Author(s): Gunchandrasuri
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
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| पुणरुत्तं विरसमारसंतो बला चेव पक्खित्तो विवरम्मि पाविओ य विणासंति ।
अह सवत्थविनय वित्थरियं जहा कवालियतवस्सी । नियजीहादोसेणं पंचतं पाविओ विवसो ॥ १ ॥ ता सोऽवि जणो भासागुणदोस चिंतणुजुत्तो । सुमुणिव संपयत्तो किमसकं मरणभीयाण ? ॥ २ ॥ इतुज्झ म कहिओ गोअम ! उच्छिखलुलवणरूवो । जमंदंडोब पयंडो अणत्थदंडो दुहोहकरो ॥ ३ ॥ तिन्निवि (एयाई मए) भणियाई गुणवयाई एत्ताहे । चत्तारिवि सीसंती (सिक्खाई) निसुणसु तं गोअमसगोच ! ॥१॥ सावजेयरजोगाण वजणासेवणोभयसरूवं । सामाइयंति तेसिं पढमं सिक्खावयं होइ ॥ २ ॥ मणवण काय दुष्पणिहाणं इह जं न उ विवजेइ । सयकरणयं अणवद्वियस्स तह करणयं च गिही ॥ ३ ॥ सामाइए उजुत्ता अविचलचित्ता सुरोवसग्गेऽपि । होंति भवपारगामी सत्ता नणु कामदेवोव ॥ ४ ॥ जह कामदेव संमत्तं पाविओ ममाहिंतो । सामाइऍ निकंपो सुरोवसग्गेऽवि तह सुणसु ॥ ५ ॥
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चंपानयरीए विजियमंडलो जियसत्तू नाम राया, कामदेवो सेट्ठी, नियनियकम्मसंपत्ता कालं बोलिंति, अन्नया य गामाणुगामं विहरंतो अहं तत्थ समोसढो, तओ उज्जाणपालगेहिं विन्नत्तो राया, जहा -देव ! भवियकमलबोहणदिवायरो चरिमतित्थयरो सहसंववणुज्जाणे समोसढोत्ति, एवं सोचा रत्ना दिन्नं तेसिं महतं पारिओसियं, दवाविओ नयरीए पडहगो - जहा नायकुलकेरणो महावीरस्स भगवओ वंदणत्थं पत्थिवो निग्गच्छर, ता भो !

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