Book Title: Mahavira Charitam
Author(s): Gunchandrasuri
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund

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Page 675
________________ - SPORE श्रीगुणचंद 181 अन्नया य चउद्दसिदिणमि पडिवन्नो अणेण उववासो गहिउं चउव्हिपि पोसह, ठिओ य गिहेगंतभूयाए जाण- पौषधे महावीरच० सालाए निसिमि काउस्सग्गेण, मंगलावि मयरद्धएण वाहिजमाणी उज्झियकुलाभिमाणा अगणियाववाया नीय- जिनदास गामिणीउ कामिणीउत्ति य पवायं सच्चविन्तिब घडिया सह विडेण, गेहजणलजाए पयर्ड चिय अकज्जमायरिउ-11 ॥३२६॥ मपारयंती पुवदिन्नसिंगारेण विडेण सद्धिं रयणीए समागया तं चेव जाणसालं, अचंधयारत्तणेण काउस्सग्गट्ठियं 8 प्राजिणदासमपेच्छमाणीए तंमि चेव पएसे पक्खित्तो लोहकीलगतिक्खपइट्ठाणो पल्लंको अणाए, तकीलगेण व समीस्ववत्तिणो जिणदासस्स विद्धो सहायकोमलो चलणो, सा य विडेण सद्धिमकजमायरिउमारद्धा । जिणदासो पुण अइतिक्खलोहकीलगविभिन्नचलणतलो । उप्पन्नगाढवियणो चिंतिउमेवं समाढतो ॥ १ ॥ मा! जीव काहिसि तुमं मणागमेतपि चित्तसंतावं । सयमवि दिडे विलिए भजाएँ अकजसत्ताए ॥२॥ जं परमत्थेण न एत्थ कोऽवि भजा व सयणवग्गो वा । किंतु सकजविणासे सबंपि परंमुहं ठाइ ॥३॥ अविय-तावचिय दंसइ पणइभावमायरइ ताव अणुकूलं । निययत्थविसंवायं जाव न पेच्छइ पणइलोगो ॥ ४ ॥ ता एयाए धम्मत्थसुन्नचिंताए एत्थ को दोसो ? । इत्थी सभावओ चिय दुग्गेज्झा बुचई जेण ॥५॥ अइरक्खियावि अइपालियावि अइगाढरूढपणयावि । बाढं उवयरियाविहु देइ दुरंतं भयं महिला ॥६॥ एत्तो चिय मुणिवसमा सुबुद्धिमाहप्पमुणियपरमत्या । पचक्खरखसीहि व महिलाहिं समं न जंपंति ॥ ७ ॥ --- -राड

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