Book Title: Mahavira Charitam
Author(s): Gunchandrasuri
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund

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Page 678
________________ अवराहो?, दुप्पडियाराणि पावकम्माणि एवंविहाहिं विडंबणाहिं कयत्थिति निस्सरणं पाणिगणं, देवीए भणियं६ अलमुच्चावयभणियवेणं, भो महाणुभाव ! साहम्मिओत्तिकाऊण पूयणिजोसि तुमति ता साहेसु-किं ते पियं की रउ ?, तेण जंपियं-किमेत्थ कायचं अत्थि ?, पुचिं दुच्चिन्नाणं कम्माणं फलविवागमणुहवंतस्स समाहिमरणं चिय मे पत्थियवं, तंपि भागविवजएण दुल्लभं व लक्खिजइ, ताहि भणियं-कहमेवं जाणिजइ?, कुटिणा भणियं-अहं मंदभग्गो, अइसइणा भणियं-जहा तुमं मरणकाले सम्मत्वं वमिहिसि तेणेमं जाणामि, चित्तसंतावं च उवहामि, हाताहिं जंपियं-भद्द ! तुह जइ एवं ता विसममावडियंति, एवं च खणमित्तं विगमिऊण विम्हियमणाओ गयाओ 81 है ताओ सगिहं । अन्नंमि य वासरे चउनाणोवगओ सूरतेओ नाम सूरी समोसरिओ, तओ सेद्विणी देवी य गया है। तबंदणत्थं, सुया धम्मकहा, पत्थावे य पुच्छियं ताहि-भययं ! पुवं चेइए गयाहिं अम्हेहिं जो कुट्ठी दिट्ठो सो कीस 18 संमत्तं मरणसमए वमिही?, सूरिणा भणियं-सो पजंतसमए माणुस्सेसु आउबंधं काऊण उप्पजिही, न य गहिय-81 सम्मत्तो अणंतरभवे मणुअत्तं तिरियत्तं वा पावइ, जेण भणियं सम्मट्ठिी जीवो विमाणवजं न बंधए आउं । जइ उ न संमत्तजढो अहव न बद्धाउओ पुधिं ॥ १॥ हा रायपत्तीए भणिय-कहिं पुण सो उववजिही ?, सूरिणा जंपियं-एयाए सेट्ठिणीए पुत्तत्ताएत्ति, एवं सोचा विस्हियाओ वंदिय सूरिं नियत्ताओ ताओ सगिहें, निरुवाविओ भाविपुत्तसिणेहेण सो कोट्ठी सेद्विणीए, न य कहंचि ।। POCHISSESSO

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