Book Title: Mahavira Charitam
Author(s): Gunchandrasuri
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund

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Page 676
________________ ता ते चिय इह धन्ना सुलद्धनियजम्मजीवियफला य । जे उज्झिऊण महिला संजमसेल समभिरूढा ॥८॥ धन्नो सणंकुमारो जो पुरमंतेउरं सिरिं रजं । उज्झित्ता निक्खंतो परमप्पा मोक्खसोक्खकए ॥९॥ एको अहं अधन्नो जो कुलडाए अणत्थमूलाए । दुट्ठमहिलाए कजे एवं वुत्थोऽम्हि घरवासे ॥ १०॥ अहवा समइकंतत्थसोयणेणं इमेण किं बहुणा? । एत्तोवि सबविरई भावेणाहं पवजामि ॥११॥ इय चिंतिऊण तेणं तिविहंतिविहेण वोसिरिय संगं । पंचपरमेट्ठिमंतो पारद्धो सरिउमणवरयं ॥ १२ ॥ अह पवलचलणपीडोवक्कमियाऊ चइत्तु नियदेहं । भासुरसरीरधारी देवो वेमाणिओ जाओ ॥ १३ ॥ आउक्खयंमि तत्तो सो चविऊणं विदेहवासंमि । निद्ववियकम्मगंठी पाविस्सइ सासयं ठाणं ॥ १४ ॥ इय गोयम! निचलमाणसस्स जिणभणियधम्मकजंमि। जायइ जीवस्स धुवं अकालखेवेण सिवलाभो ॥१५॥११॥ भणियं तइयं सिक्खावयं इमं संपयं पुण चउत्थं । एदंपजसमेयं जह होइ तहा निसामेह ॥ १॥ अन्नाईणं सुद्धाण कप्पणिजाण देसकालजुयं । दाणं जईणमुचियं चउत्थ सिक्खावयं एयं ॥२॥ सचित्तनिक्खिवणयं वजइ सञ्चित्तपिहणयं चेव । कालाइक्कम परववएस मच्छरिय पंचेव ॥३॥ अन्नाईण पयाणं निचंपिय होइ गिहिजणस्सुचियं । जइणो पडुच किं पुण पोसहउववासपारणए? ॥ ४ ॥ अतिहीण संविभागं नूणमकाउंन जे पजीमंति । ते साहुरक्खिओ इव देवाणवि होति महणिजा ॥ ५ ॥ DIR

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