Book Title: Mahavira Charitam
Author(s): Gunchandrasuri
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund

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Page 683
________________ श्रीगणचंद बा जयगुरुणा उवइढे तहत्ति पडिवजिऊण जहागयं पडिगओ राया नमतमउलिमंडलो, देवलोग पट्ठिया आखंडला, गणधरदेमहावीरच०४ ८ प्रस्तावः शविइकंता पढमा पोरसी । अह चारणगणेहिं थुवंतो जयगुरू सिंघासणाओ समुट्ठिऊण पुर्व चिय सुरविरहयंमिशना दर्दुदेवच्छंदर्यमि सुहसेजाए निसन्नो । गोयमसामीऽवि कप्पोत्तिकाऊण भगवओ मणिपायपीढासीणो धम्मदेसणं | तरांक देवा। २२० ।। काउमारद्धो । सो य केत्तियं पुवभवाइं साहइ ? केरिसो वा लक्खिजइ ?, तत्थ भन्नइ संखाईए उ भवे साहइ जं वा परो उ पुच्छेजा । न य णं अणाइसेसी वियाणई एस छउमत्थो ॥१॥ II असुरसुरखयरकिन्नरनरतिरिया मुक्कसेसवावारा । सवणंजलीहिं तद्दसणामयं परिपियंति दढं ॥ २॥ | आइक्खइ गणनाहो धम्मं ता जाव पोरिसी बीया । पच्छा पइदिणकिचं सामायारिं समायरइ ॥३॥ ता एवं च समइकतेसु कइसुवि वासरेसु एयंमि वासरे सिंहासणे निसन्नस्स बद्धमाणस्स नियनियट्ठाणनिविटे चउ-11 बिहेवि देवनिकाए पंजलिउडं पजुवासमाणे य सेणियमहानरिंदे एगो सुरो मायासीलयाए कुहिरूवं विउवि-12 ऊण सरसगोसीसचंदणरसच्छडाहिं सरीरविणिस्सरंतपूयसंकाकारिणीहिं भयवओ समीवमल्लीणो चलणकमलवि-11 लेवणं काउमारद्धो, तं च तहाविहं दुगुंछणिजस्वं पेच्छिऊण चिंतियं सेणिएण-अहो को एस दुरायारो गलत-14॥ ३३०॥ गाढकोढसुढियसरीरदुग्गंधगंधवाहेण दूमितो सयलंपि परिसं भुवणेकगुरुणो समीवडिओ एवं अचासायणं । कुणइ ?, अहवा कुणउ किंपि ताव उद्वियाए पुण परिसाए अवस्सं मए निग्गहियघोत्ति विकपंतेण छीयमाणेण । 456GRe-E-96025

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