Book Title: Mahavira Charitam
Author(s): Gunchandrasuri
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund

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Page 684
________________ अह कोढियसुरेण भणिय-जीवसुत्ति, मुहुतंतरे य बोलीणे छिकियमभयकुमारेण, पुणो तेण भणिय-जीवाहि वा ।। मराहि वा, कालसूयरिएण छीए भणियं-मा जीव मा मर, समइकते य खणंतरे भुवणेकगुरुणा छीयं, भणियं-मर-11 सुत्ति, तं च सोचा अचंतजिणनाहपक्खयाएण वियंभियपवलकोवानलेण राइणा भणिया समीववत्तिणो पुरिसा-181 अरे एवं दुरायारं गुरुपचणीयमुट्ठियाए परिसाए हत्थे घेत्तूण मे समप्पेजह जेण दंसेमि दुधिणयफलं, तेहिं भणिय-जं देवो आणवेइत्ति, अह जायंमि पहरपजवसाणे सट्ठाणं पढिएसु तियसेसु सो कुट्ठिसुरो जयगुरुं परमायरेण पणमिऊण गंतुमारद्धो, ते य पुरिसा नरिंदाएसमणुवत्तंता तं घेत्तुमुवट्ठिया, तयणंतरं च एस गओ एस गओ सो कुट्ठी एवमुलवंताण रायपुरिसाण पुरओ देवो अहसणं पत्तो, [इय वाहरंतेहिं] तेहिं विलक्खीभूयमाणसेहिं निवेइगमेयं राइणो, अह बीयदिवसे परमकोऊहलमुबहतेण रन्ना पत्थावे पुच्छिओ जयगुरू-भयवं! अइकंतवासरे तुम्हं समीववत्ती कुछ विलीणकाओ अविभावणिजसरूबो को पुरिसो आसि?, भयवया जंपियं-महाराय! देवो, सो संपयं दडुरंकविमाणे । 18 समुप्पन्नो, रना भणियं-कहं चिय?, भगवया बागरियं-निसामेसु, अत्थि वच्छाविसए कोसंबी नाम नयरी, तहिं च सयाणिो नाम नरवई, साड्डयगो नाम माहणो, सो य ज माणतरमेव रुंददारिदोववपीडिओ कहकहवि कणवित्तीए कालं गमेइ, अन्नया य आवन्नसत्ताए खरमुहीनामाए। भिजाए भणिओ एसो-भो बंभण! आसन्नो पसवसमओ, न य घरे घयतंदुलाई अस्थि, ता कीस निर्चितो चिट्ठसि ? 3900000 - R- 4- ५६ महा 24

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