Book Title: Mahavira Charitam
Author(s): Gunchandrasuri
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
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८प्रस्तावः
श्रीगुणचंद || गोयमेण जंपियं-भुवणतयसामिसाल! साहेसु को एस साहुरक्खिओ?, कहं देवमहणिजोत्ति, भगवया वागरियं-18] अतिथिमहावीरच०आयन्नसु-अस्थि सयलदिसावलयविक्खाया वाणारसी नाम नयरी, तहिं वसू नाम राया, सर्वतेउरपहाणा वसुमई सामान
देवी, वणियलोयसम्मओ जिणपालिओ सेठी, जिणमई से भारिया, एयाणि चत्तारिवि परमसावगाणि परोप्परं PM ॥३२७॥8/परूढगाढपेम्माणि य एक्कचित्तत्तणेणं जिणधम्मं पालिंति, अन्नया सेहिणी नरिंदंपत्ती य पंचवन्नसुरहिकुसुमदहि-पहा
यक्सयसुगंधिगंधधूववासपडिपुन्नपडलकरपरियरियाओ गयाओ जिणालयं, विरइया अणेगविच्छित्तिमणहरा सबजुबिंबाण पूया, तो विचित्तथुइथुत्तदंडएहिं सुचिरं जिणं थुणिऊण पयाहिणं दाउं वाहिं नीहरिया, ताहिं एगत्य है। पएसे अचंतदुईसणो मच्छियाजालाभिणिभिणारावभीसणो वणमुहनिस्सरंतकिमिसंवलियपूयप्पवाहो सडियंगुलि-II
नासोट्टो कुट्ठवाहिविणठ्ठदेहो दिवो एगो पुरिसो, तं च दगुण देवीए भणिय-भो महाणुभाव ! कीस सबन्नृणमासातयणं इहडिओ करेसि?, तेण भणियं-नाहमेत्य निवासस्थी समागओ, किंतु चेइयवंदणत्थं, सेहिणीए भणियं-देवि !
जइ इत्तियमेत्तमेव पोयणं पडुच अच्छइ ता अच्छउ, को दोसो ?, जओ सुस्समणावि जाव चेइयाई वदति । वक्खाणं वा करिति सिणाणं वा पेच्छंति (सिस्साणं वायणं वा पयच्छंति पु.) ताव जिणभवणे निवसंति, देवीए । ॥२७॥ भणियं-तहावि विणट्ठसारीरत्तेण न जुज्जइ एयस्स अच्छिउं, अहवा निट्ठीवणाई अकरितो सम्ममुवउत्तो निमेसमित्तं । जिणबिंबावलोयणेण अप्पणो समाहिमुप्पाएउ, किमजुत्तं ?, सेट्ठिणीए भणियं-एवमेयं, को महाणुभावस्स एयस्स है।
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