Book Title: Mahavira Charitam
Author(s): Gunchandrasuri
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
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सिट्ठों पुबुत्तो कुट्ठियुत्तंतो, तं च सोचा सुमरियपुत्रभवो साहुरक्खिओ परं निवेयमावन्नो संसारवासस्स । अन्नया यह तप्पुन्नपन्भारसमागरिसिओब समागओ विजयघोसो नाम सूरी, पउरलोगेण समं सो गओ तवंदगत्थं, सविणयं ।। पणमिऊण निसन्नो गुरुचलणंतिए, सुया धम्मदेसणा, तहाविहकम्मक्खओवसमेण जाओ से देसविरइपरिणामो, पडिवन्नो य सूरिसमीवे दुवालसरूवो सावगधम्मो, अन्नया य अट्ठमीए को अणेण पोसहोववासो, इओ या कप्पसमत्तीए विहरिया सूरिणो, सो य पारणगदिवसे पोसहं पाराविऊण उचियसमए अतिहिसंविभाग काउमणो पढिओ य साहुसमीये, गेहाओ नीहरंतो य भणिो जणणीए-बच्छ! कहिं वचसि?, मुंजेसु ताव सिद्धं वट्टइ, साहुर-है। | क्खिएण भणियं-अम्मो ! अतिहिसंविभागवयं पडिवजिय कहं गुरुणो असंविभाइय सयं भुंजामि ?, ता वाहरामि ताव साहुणो, तीए भणियं-पुत्त ! विहरिया अन्नत्थ भयवतो किं न याणसि तुम?, एवं तीए कहिए गहिओ सो रणरणएण समाहओ सोगेणं पारद्धो अरईए, नियत्तिऊण य पडिओ मंचिए, चिंतिउमाढत्तो यकह पोसहोववासो को मए ? कह य विहरिया गुरुणो?। अन्नं चिंतियमन्नं च निवडियं मंदभग्गस्स ॥ १॥18 अहवा मरुत्थलीए कि कप्पतरू कयावि उग्गमई । मायंगमंदिरे वा छजइ अइरावणो हत्थी ॥२॥ आजम्मरोरगेहे विसट्टकंदोदलविसालच्छी । लच्छी कयावि पविसइ करयलरेहतसरसिरहा ? ॥ ३ ॥
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