Book Title: Mahavira Charitam
Author(s): Gunchandrasuri
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund

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Page 674
________________ - - अचंतभवविरत्तचित्तो सवन्नुवइट्ठपरमत्थभावियमई जिणदासो नाम सावगो, नावव पडिकूलचारिणी मंगलमुत्तिव! तिवरागाणुगया मंगलां नाम से भारिया, सो य बहुसो सामाइयपोसहतवोविसेसनिसेवणाभिरओ पवजं पडिवजिउकामो बलतुलणं करेइ । सा य से भारिया अचंतसंकिलिट्ठयाए उक्कडवेयत्तणेण समणं व तं विजियमयणवियारमवलोइऊण फरसगिराए निभच्छंती भणइहे मुद्ध! धुत्तलोएण वंचिओ तसि विजमाणेवि । जो भोगे वजित्ता अविजमाणं महसि मोक्खं ॥१॥ निलक्खण! दुरणुचरं तवोविसेसं निसेविउं कीस । सोसेसि नियसरीरं? किं अप्पा वेरिओ तुझ?॥२॥ जइ तं विसयविरत्तो पढमं चिय ता न कीस पवइओ । जाओ ? जमिण्हि मं परिणिऊण एवं विडंबेसि ॥३॥ अह तं ममनिरवेक्खी जहाभिरुइयं करेसि एवं च । अहमवि तुह निरवेक्खा जं भावइ तं करिस्सामि ॥ ४॥18 एवं तीए मजायवजिए जंपियंमि जिणदासो । उवसमभावियचित्तो महुरगिराए इमं भणइ ॥५॥ मेहे! सद्धम्मपरम्मुहासि निम्मरमुल्लवसि तेण । तुच्छेऽवि विसयसोक्खे कहऽनहा होज पडिबंधो! ॥६॥ थोयं जीयं जरमरणरोगसोगाऽणिवारियप्पसरा । एवं ठिएवि कह सुयणु! कुणसि तं विसयवामोहं? ॥७॥ तीए(ता) भणियं होउ अलं तुज्झ सद्धम्मदेसणाए ममं । सयमवि नट्ठो दुचेठ! धिट्ठ अन्नपि नासेसि ॥८॥ इय तीए दुनिट्ठरमुहीए दुविणयमूलभूमीए । निभच्छिओ समाणो जिणदासो मोणमल्लीणो ॥९॥

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