Book Title: Mahavira Charitam
Author(s): Gunchandrasuri
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
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एवं बुत्तोवि न जाव कंपिओ सो तया महासत्तो । ताव परुट्टो देवो गइंदरूवं विउच्चेइ ॥३॥ तयणंतरमुल्लालियपयंडसुंडो घणोव गर्जतो । वेगेण धाविऊणं गेण्हइ तं सावयं शत्ति ॥ ४ ॥ सवत्तो गत्तं विहवेइ चलणेहिं पक्खिवइ गयणे । तत्तो निवडतं पुण पडियच्छइ दंतकोडीहिं ॥ ५ ॥ एवं बहुप्पयारं तं पीडिय कुणइ भुयगरूवं सो । पच्छा तिक्खाहिं दढं दाढाहिं तणुं विदारेइ ॥६॥ तहविहु अखुब्भमाणे गिहिप्पहाणंमि कामदेवंमि । रक्खसरूवं काउं उवसग्गं काउमारद्धो ॥ ७॥ अह खणमेगं घोरट्टहासकरतालतालणं काउं । परिसंतो सो तियसो भत्तीए तयं इमं भणइ ॥८॥ भो कामदेव ! साक्य तियसोऽहं तुज्झ सत्तनाणट्ठा । एत्थागओ महायस! ता पसिय वरेसु वरमेत्तो ॥ ९॥ थेवोऽविहु उवयारो विहिओ तुम्हारिसे गुणनिहिमि । अस्संखसोक्खखंधस्स कारणं होइ निभंतं ॥१७॥ एवं भणिओऽवि सुरेण सायरं वरमुणिव थेवपि । जाव न स कामदेवो हमवि पचुत्तरं देइ ॥ ११॥ ताव नमंसिय चरणे उक्वित्तिय गुणगणं च से तियसो । परमच्छरियमुवगओ जहागयं पडिनियत्तो य ॥११॥ इयरोऽवि धम्ममाराहिऊण तइए भवंमि निवाणं । सायत्ताणदसुहं पाविस्सइ निहयकम्मसो ॥ १३ ॥ इय जइ गिहिणोऽवि समुज्जमंति धम्ममि निचला धणियं । ता उज्झियगिहवासा तवस्सिणो किं पमायंति? ॥१४॥ एवं वीरेण जिणेसरेण जइणो पडच वागरिए । सविसेससंजमुजयचित्तो जाओ समणसंघो ॥ १५॥
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