Book Title: Mahavira Charitam
Author(s): Gunchandrasuri
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund

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Page 647
________________ GE 2009 श्री सो दविणाइनिमित्तं वचंतो दूरदेसनयरेसु । पविसंतोऽवि समुद्दे कुणमाणो विविहववसायं ॥ ७॥ पञ्चमेऽणु वते वासव महावीरच० लाभेऽविहु पइदिणवढमाणधणवद्धणाभिलासो य । अचंतमहादुक्खं वासवदत्तोब पावेइ ॥ ८॥ विसेसयं तीहि ।। दत्तकथा. ८प्रस्ताव अह गोयमेण भणियं वासवदत्तो जिणिंद ! को एस। जयगुरुणा संलत्तं सीसय ! सम्मं निसामेसु ॥९॥ ॥३१२॥३कणयखलंमि महानयरे सुवलयचंदो नाम सेट्ठी, तस्स धणा नाम गिहिणी, तेसि अचंतवल्लभो सबकलाकलाव-18 है निउणो वासवदत्तो नाम पुत्तो, सो य महारंभो महापरिग्गहो गरुयलाभसंभवेऽवि महालोभसंगओ, अहोनिसं दबो वजणोवाए पट्टतो कालं बोलेइ, तस्स य अम्मापिउणो अचंतसावगधम्मकरणसीलाणि जिणवयणायनणेण मुणि-12 15यअविरइकडुविवागाणि तं नियपुत्तं अणवरयाणेगपावट्ठाणपसत्तं पलोइऊणं भणंति-वच्छ! सुमिणोवमं जीवियं 181 असारा विसया सकजाणुवत्तणमत्ता सयणसंजोगा खणविपरिणामधम्मा रिद्धिसमुदया, अओ किंनिमित्तं न कुगसि | धणधन्नखित्तवत्थुहिरन्नसुवन्नदुपयचउप्पयाइसु इच्छापरिमाणं, न वा परलोयसुहावहं समजिणेसि धम्म, तहा | वच्छ ! पिउपियामहपुरिसपरंपरागयं न माइ दवं, अओ निरत्थओ तदज्जणगाढपरिस्समो, अह अपुवं लच्छि उववजिउमिच्छसि तहावि जहासत्तीए इच्छापरिणाममेव कल्लाणकारगमिचाइ बहुप्पयारवयणेहिं पनविजमाणोऽवि न| 81॥ ३१२ । पडिवज्जइ कम्मभारियत्तणेण एसो मणागपि तवयणं, सच्छंदचारित्ति उवेहिओ अम्मापिऊहिं । अन्नया य देसंतरागयवणिया पुच्छिया वासवदत्तेण-अहो किं तुम्ह देसे भंडमग्घइ ?, तेहिं कहियं-अमुर्गति, तो तवयणनिसाम -64- 04-4-20

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