Book Title: Mahavira Charitam
Author(s): Gunchandrasuri
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
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ता मेलह कुविगप्पं नावं लेह दीवयाभिमुहीं । उच्छिदह दारिदं आनंदं रयणगहणेण ॥ ५ ॥
एवं च तेण कहिए पणgविणिवायभएहिं निजामगेहिं पवाहिया तदभिमुही नावा, जाव य केत्तियंषि विभागं गया ताव समुट्ठिओ महामगरो, तेण य मंदरमंथेणेव महियं जलहिजलं, उच्छालिया पयंडकलोला, तदभिघाएण भिन्ना सयसिकरा नावा, निवुड्डो अत्थसारो, खरपवणपहओ पलालपूलउच्च दिसो दिसि पलीणो परियणो, वासव| दत्तोऽवि कहकहवि समासाइयफलहखंडो वेलाजलेण वुज्झमाणो पाविओ सायरस्स पारं, कंटग्गगयजीविओ य दिट्ठो एमेण तावसेणं, तेणावि करुणाए नीओ निययासमे, काराविओ कंदमूलाइणा पाणवित्तिं, वीसंतो कहवयवासराई, समुवलद्धसरीरावर्द्धभो य पट्टिओ नियनयराभिमुर्ह
इओ य तस्स अम्माfपणो परलोयं गयाई, जाया य नयरंमि वत्ता, जहा - वासवदत्तोवि समुद्दे वोहित्यगंगेण विणासं पाविओ, ओच्छिन्नसामियंतिकाऊण गहियं धणकणसमिद्धेपि तम्मंदिरं नरिंदेण, वासवदत्तोऽचि संवलरहियत्तणेणं धणविणाससमुत्थसोगेण य किलंतदेहो महाकटुकप्पणाए संवच्छरमेत्तकालेण संपत्तो कणगखलनयरं, पथिसिउमारद्धो य नियमंदिरं, एत्यंतरे उग्गीरियदंडा पधाविया नरवइनिरूविया घरारक्खगपुरिसा, भणिउं पवचा| अरे कप्पडिय ! घरसामियव निभओ कीस इह पविससि ?, किं न याणसि इमं रण्णो गिहं ?, तेण भणियं-किमेयं कुवलयचंदसेट्ठिणो न भवइ ?, तेहिं कहियं - हंत हुतं पुचकाले, संपयं पुण असामियंति रन्नो जायं, तेण भणियं

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