Book Title: Mahavira Charitam
Author(s): Gunchandrasuri
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund

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Page 649
________________ श्रीगणवंद तेणावि सायरे पवाहियाई जाणवत्ताई, सिग्धवेगेण गर्नु पयत्ताणि, कमेण पत्ताई फलहदीवं, उत्तारियं तेहिंतो इच्छाधार महावीरचा भंडं, विक्विणियं च, जाओ बहुओ लाभो, ठिओय कइवयवासराई, गहिया मणिमोतियसंखएहसुत्तपमुहपहाणकया- माणे ८ प्रस्तावःणगाई, तओ पयट्टो तामलित्तिसंमुह, इतस्स य जलहिमझे दंसिगो निजामगेहिं तस्स रथणदीयो, कोउहलेण पुच्छिया ॥३१३॥ अणेण-अरे किमिह उप्पजइ ?, निजामगेहि भणियं-कक्केयणपउमरागवजिंदनीलाइणो महारयणपिसेसा ते इह 12 उपजंति, तेसिं समीवधरणमेत्तेण विवइ रुंददारिदोवदयो, न पासंमि परिसप्पइ दयुमडो सम्पो, म निगडम18 कमइ चंडावि डाइणी, खिल्लियमुहोव न कड्डयमुल्लवइ खलगणोवि, तओ अपरिकलियविणासेणं जायतग्गहणगाढा भिलासेण भणियं वासवदत्तेण-अहो निजामगा! जइ तत्तो हुत्तं नेह मह नावं तो चउग्गुणं देखि थे वित्ति, तेहिं ।। भणियं-निजइ, केवलं उवलपडलाउला भूमी, जइ कहवि नावा भंग पाविज्जा ता सबनासो जाएजा, तओ ईसि । विहसिऊण वासवदत्तेण भणियं जइ गयणं निवडेजा पल्हत्थेजा रसायले पुढवी । कुलगिरिणो य सपक्खा होउं व महीए बोजा ॥१॥ जलनिहिणो वा वेलाए महियलं सबओवि बोलिज्जा । जगणी वा नियपुत्वं हणेज पढमप्पसूर्यपि ॥ २ ॥ ता रन्नंपिव सुन्नं होज जयं किं तुं हबइ नो एयं । नय सबहावि अघडंतमेरिसं चिंतिउं जुचं ॥३॥ जो पुण इय चिंताए पयट्टए सो धुवं महामुद्धो । करकमलगोयरगयं लच्छि हारेज किं चोज ? ॥ ४॥

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