Book Title: Mahavira Charitam
Author(s): Gunchandrasuri
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
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कूलवयणेहिं उवसग्गिउं, नियमविग्धकारिणित्ति कलिऊण निम्मत्थिया सा कुमारेण, कहं? -
पाविट्ठि दुठुसीले ! निकारणधम्मवेरिणि ! तुमं मे । अवसर चक्खुपहाओ पज्जतं दंसणेण तुहं ॥ १ ॥ तुम्हारिसीण भासणेऽवि असणिव दारुणा पडइ । इहपरभवपडिकूला अच्चत्थमणत्थपत्थारी ॥ २ ॥ इय एवमाश्वयणेहिं तज्जिया सा न जाव नीहरइ । ताव करे घेणं कुमरेण दढेण निच्छूढा ॥ ३ ॥ आ पाव! पावसि तुमं एतो पंचत्तमिति य जंपित्ता | कवडेण सयंचिय नहसिहाहिं उल्लिहियकायलया ॥ ४ ॥ सा दूरे ठाऊणं हलबोलं काउमेवमारद्धा । रे रे लयाहरगयं गेण्हह पुरिसाह एवं ॥ ५ ॥ कुलजुवइदूसिया जेण मज्झ एवंविहा कथावत्था । तमुवेहता संपर दंसिस्सह कह मुहं रन्नो ? ॥ ६॥ एवं सोचा नरवइयाय वयणं परूढकोवेहिं । आरक्खियसुहडेहिं लयाहरं वेढियं झत्ति ॥ ७ ॥ कुमरोऽवि ती हिययं व निठुरं पाणिणो धणुं धेतुं । तत्तो विणिक्खमित्ता तेसिं ठिओ चक्खुपसरंमि ॥८॥ ता तेहिं समगं पम्मुक्का चक्क सेलसरनियरा । छेयत्तणेण पंचाविया य सयला कुमारेण ॥ ९ ॥ तप्पहरणेहि य हुं निया गोमाउयव ते तेण । अह निसुणियवत्त्तो रायावि समागओ तत्थ ॥ १० ॥ अच्चतजायकोवो जुज्झेोवडिओ सयं चैव । करितुरयरहारूढा वियंभिया हडसत्यावि ॥ ११ ॥ तो चउदिसि पसरियउ सन्तुसिनु, पेक्खेवि अखुदु जिंव कुंभयन्नु ।

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