Book Title: Mahavira Charitam
Author(s): Gunchandrasuri
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
View full book text
________________
पडिओ से पाए, पणयगन्भपत्थणाहिं बहुप्पयारं तहा तहा भणिओ जहा जाओ सो अनुकूलचित्तो, तओ भणिय| मणेण - अहो सोमदत्त ! बाढमकहणिजमेयं, केवलं तुह असरिसपक्खवाएण विहुरियं मे हिययं, न एत्तो गोविउँ पारेइ, अओ आयन्नेहि - भो महायस ! जा एसा तुह दुहिया सा थेवदिणमज्झमि कुटुंबक्खयमाणिस्सइति लक्खणेहिं नाऊण मए भोयणे पारद्धे अकंडविणिवायतरलियचित्तेण तहाविह मणिटुं गोविउमसहतेण पुणो पुणो सिक्षारो कओ, ता भो महाणुभाव ! एयं तं कारणं, इमं च सेट्ठी निसुणिऊण वज्जासणिताडिओघ मुच्छा निमीलियच्छो इव खणं ठाऊण कहबि समवलंबियधीरभावो भणिउमादत्तो—
भयवं ! एत्तियमेत्तं जह तुमए जाणियं सुबुद्धीए । तह उत्तरंपि किंची जाणिहिसि अओ तयं कहसु ॥ १ ॥ जं पयडमिमं लोगे जो विज्जो मुणइ रोगिणो रोगं । सो तदुचियमोसहमवि ता भंते! कुणसु कारुण्णं ॥ १ ॥ तुम्हाणणुग्गहेणं जइ देवगुरूण पूयणं कुणिमो । अम्हे अद्दीणमणा ता किमजुत्तं हवेज इह ? ॥ ३ ॥ निरुवमधम्माधाराण तुम्ह नोवेक्खणं खमं जेण । परहियकरणेक्कपरा चयंति नियजीवियद्वंपि ॥ ४ ॥ तम्हा उज्झसु संखोभमणुचियं कहह जमिह कायवं । पुवसुणिणोऽवि जेणं परोवयारं करिंसु सया ॥ ५ ॥ एवं सेणा कहिए ईसिमउलियनयणेणं जंपियं तेण भो सोमदत्त ! सुनिचलं जंतिउम्हि तुह दक्षिणरज्जूए, एत्तोच्चिय महाणुभावा गिहिसंगं मोत्तूण विजणवणविहारमन्भुवगया पुवमुणिणो, सेट्ठिणा भणियं- अच्छउ

Page Navigation
1 ... 636 637 638 639 640 641 642 643 644 645 646 647 648 649 650 651 652 653 654 655 656 657 658 659 660 661 662 663 664 665 666 667 668 669 670 671 672 673 674 675 676 677 678 679 680 681 682 683 684 685 686 687 688 689 690 691 692 693 694 695 696 697 698 699 700 701 702 703 704 705 706 707 708