Book Title: Mahavira Charitam
Author(s): Gunchandrasuri
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
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श्रीगुणचंद | कजसेसं काऊण समागओ तस्समीवं, निवडिओ तस्स चलणेसु, जोडिय करसंपुडं च भणिउमाढचो-भयवं! पसायं ने महावीरच काऊण साहेह, किं कारणं भोयणं कुणतेहिं तुम्हेहिं तिक्खुत्तो दुस्सहदुक्खावेगसूयगो इव सिक्कारो विशुक्कोतिर,सुहकरेण सुरेन्द्रदत्त
भणिय-भो महाणुभाव! किं साहिजइ?, एरिसा चेव हयपयावइणोरुई, जं सर्व चिय रयणं सोववं लिम्मबेइ,तहाहि-2 कथायाँ ॥३०७॥18] सयलकलानिलयस्स य गयणसरोवरसहस्सपत्तस्स सुरलोयभवणमंगलकलसस्स पइपक्वं खओ को निसायरस्स,
ख्यान नीसेसतिरियलोयपईवस्स कमलसंडजडखंडणेकपयंडकिरणस्स भयवओ मायंडस्स अणिवत्तयउगाढकुट्ठदोसेण । विणासिया चरणा, अणेगरयणसंभारभरियगंभीरकुच्छिभागस्स महाजलुप्पीलपवाहियविवरसुहसरियासहस्सस्स
सायरस्सवि अणवरयसलिलसंहारपञ्चलो निवेसिओ कुञ्छिमि वजानलो, एवं च ठिए वत्थुपरसत्ये किमरिथ कहणिज? 18|को वा वोढयो चित्तसंतावो?, सेटिणा भणियं-भयवं! न मुणेमि किंपि गंभीरवयणेहि, ता फुडक्वारं साहेह, किमिहा
कारण ?, सुहकरेण भणियं-कहेमि, अलाहि एत्तो जंपिएण, नियमजायाविघायपरिहारसमुजओ चेच जइजणो होइन। एवं भणिऊण डंभसीलयाए समुट्ठिऊण गओ सो निययासमपयं, सेट्ठीवि अयंडविडरसूयर्ग से वयणं निखामिऊण संखुद्धो परिभाविउं पत्तो-अहो तिकालगयत्थपरिन्नाणनिउणेण महातवस्सिणा अणेण नृणं अम्ह किंपि गामाययाव-15 डणमवलोइऊणवि चित्तपीडापरिहरणट्ठया न य पयडक्सरेहिं समुल्लवियं कज्जतंतं, ता जावजवि न समुप्पजा है। कोऽवि अणत्यो ताव तं मुणिवरं गाढाणुरोहपुवगमापुच्छिऊण जहोचियमायरामिचि चिंतिऊण गो तस्स आसमं,
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