Book Title: Kesariyaji Rushabhdev Tirth Ka Itihas Author(s): Motilal Marttand Publisher: Mahavirprasad Chandanlal Bhanvra Jain View full book textPage 8
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भ्याम् श्री ऋषभेश्वर प्रासादस्य जिलोंद्धार श्री नाभिराजवरवंश कृतावतार कल्पद मामाह सेवनेषु.." उक्त लेख से यह प्रमाणित होता हैं कि गर्भगृह शिखर तमा खेल मंडप विक्रम संवत् १४३१ में काष्ठासंघो भट्टारक धर्मकिति के उपदेश से शाहं हरदास और उनके पुत्र पुजा तथा किता ने जोरर्णोद्धार कराया। इससे स्पष्ठ हे कि सं० १४ ३१ के पुव भी पुराना मदिर था। मन्दिर को नोचोकि तथा सभा मण्डप का निर्माण सं. १५७२ में दि० काष्ठासंघो वाच जाति के काश्यप गोत्रो कंडिया 'कोहिया' और उसको धमपत्नी भमरी के पुत्र हिसा' ने लगभग ८०० टका (उस समय को प्रचलित मुद्रा) व्यय करके बनवाया था। यह प्रमाण होला मण्डप की दक्षिणो दोवाल में लगे शिलालेख से स्पष्ट हैं । बावन जिनालयो का निर्माण उतरोतर हुमा हैं । क्योकि जिनालयों की प्रतिमाएं वि० सं० १६११ से १८८३ तक की है। मन्दिर का किलेनुमा कोट और सिंहद्वार मुल संघ के कमलेश्वर गोत्रीय गांधी श्री विजयचद जातो दिगम्बर जैन निवासी सागवाड़ा ने वि० सं० १८६३ में बनवाया था। इस प्रकार श्री केशरिया जी का विशाल मन्दिर वि० सं० १४३१ में जीर्णोद्वार होकर १८८६ तक बनता रहा। यदि जीर्णोद्वार के पूर्व ६०२ वर्ष पहले का पुराना मन्दिर, मानले तो भी यह तीर्थ प्राप्त प्रयारणों के माधार पर १२०० वर्ष पुराना अवश्य होना चाहिये। For Private and Personal Use OnlyPage Navigation
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