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के करीब ३ बजती है । तब दूध प्रक्षाल होता है । दूध प्रक्षाल के समय श्री जो का मुखारविन्द देखते ही बनता है दूध को प्रबल धारा में भगवान का रुप देखकर असीम आनन्द की लहर उठतो । दूध के बाद पुनः जलाभिषेक होकर "अंगपोछन" होता हैं । कच्चो घड़ी की ४ बजने पर धुपखेवन होकर केशर और पुष्पों से पूजन होतो है । तत्तपश्चात बैण्ड बाजे के साथ आरती हाती है, और स्तवन गाया जाता है । इसके बाद दिन में १ बजे तक केशर पूजा होतो है प्रक्षाल पूजा को बोली का रुपया पुजारियो को मिलता है भण्डार में जमा नहीं होता । दिन में २ बजे तक दुन्दुभि बाजे (कृत्रिम दुन्दुभि नौबत) क साथ प्रातः की भांति जल दूध का अभिषेक होता है और फिर धुपखवन होकर केशर पूजा होतो हैं सांयकाल मूलनायक को प्रांगी धारण करवाते हैं जो रात्रि में ८ बजे तक रहती हैं सन्ध्या समय सुबह की भांति बैण्ड बाजे से श्री जो की आरती उतारी जाती हैं और फिर निज मन्दिर में तथा सभा मण्डप में केशरियाजो के गुणगान होते हैं । १० बजे के बाद विशेष रुप से शान्त वातावरण में भक्ति भरे स्तवन होते है । इस कार्यक्रम में जाने के लिए मन्दिर कामदार से स्वीकृति लेना आवश्यक होता हैं । इस प्रकार दैनिक कार्यक्रम चलता है दर्शनार्थ आने वाले यात्रियों को इस कार्यक्रमानुसार दर्शन पूजन कर तीर्थ यात्रा का नाम लेना चाहिये।
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