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होकर प्रात: यहीं स्नान कर शुद्ध वस्त्र पहिनः कर. प्रक्षाल में पहुँचना चाहिए । मन्दिर की देखभाल के लिए निरिक्षक प्रधान के रुप में रहता है तथा अन्य कर्मचारी उसके नियन्त्रण में कार्य करते हैं । क्षेत्र पर आने वाले यात्रियों के लिए ठहरने को तीन धर्मशालाए हैं । धमशालाओं में सोने, बिछाने बर्तन प्रकाश आदि को व्यवस्था हैं ।
[२] पगल्याजी :
गांव के दक्षिण-पूर्व में तीन फर्लाङ्ग दूर पगल्याजी नामक स्थान है यह स्थान प्राकृतिक द्रष्टिकोण से अत्यन्त सुहावना है। भगवान ऋषभनाथ के चरण चिन्ह होने से यहां कि भाषा के अनुसार यह स्थान पगल्याजी कहलाता है बाबू कामताप्रसादजो के मतानुसार भगवान की चरण पादुकाओं वाले स्थान से धुलिया भील के स्वप्न के अनुसार केशरियाजी की प्रतिमा जमीन से निकली थो। पहले इस स्थान पर एक चबूतरा बना हुआ था । बाद में अभी हो एक नई छतरी ओर नये पगल्या बिराजमान हुए हैं ।
उसके उत्तरी भाग में महुवे के वृक्ष के निचे भगवान ऋषभनाथ का विश्राम स्थान बना हुमा हैं । कहते हैं भगवान इस स्थान से प्रकट हुए थे अर्थात यहीं विश्राम किया था । किन्तु ऐतिहासिक दृष्टि से यह कहां तक सत्य है। नहीं कहा जा सकता । हमारी राय से यह स्थान बाद में कल्पना के
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