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तीर्थ का वर्तमान रूप
[१] श्री केशरियाजी का मन्दिर :
प्राचीन इतिहास यह प्रमाणित करता है कि प्रारम्भ में मन्दिर की सारी देखभाल दिगम्बर भट्टारक के संरक्षण में थो । वि० सं० १८६० के पश्चात काष्ठासंघ के भट्टारक एवं स्थानिय भण्डारी व्यवस्था - कार्य करने लगे । तत्पश्चात भण्डारियो का कार्य सन्तोषप्रद नहीं होने से १६३४ के लगभग मन्दिर का संरक्षण उदयपुर के महाराणा ने अपने हाथ में ले लिया ओर भन्डारियों को मन्दिर को प्राय में से ३५ प्रतिशत देना निश्चत कर उनको सहायता से एक ट्रस्टी के रूप में क्षेत्र को व्यवस्था सम्भालने लगे । तब से मन्दिर संरक्षण मेवाड़ द्वारा हो रहा है। जो कि इस समय भी राजस्थान सरकार के देवस्थान विभाग द्वारा हो रहा है । हत्याकांड के बाद पूजन आदि का कार्यक्रम निश्चत कर दिया गया था जो अब तक जल घड़ी के अनुसार हो रहा है । यह घड़ी २४ मिनिट की होती हैं। कार्यक्रम इस प्रकार रहता है :
प्रातः मन्दिर की २ बजे अर्थात ७-२० के लगभग मूलनायक भगवान का जल से अभिषेक होता है । ७-४५
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