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दक्षिण की अोर सामने हो एक तरफ स्नानघर जाने के मार्ग में भ० पाशर्वनाथजी का मन्दिर है, जिसकी प्रतिष्ठा १८०१ में हुई थी उसमें मूलनायक भगवान पार्श्वनाथ की लगभग ४ फोट उतंग पद्मासन विराजमान सुन्दर श्याम वरणं पाषाण की प्रतिमा है । प्रतिमा पर सहस्त्रफण फैलाये धरणेन्द्रदेव नाग रुप में छत छाया किये हुए हैं अतः इस प्रतिमा को,, सहस्त्रफणी पार्श्वनाथ कहते हैं । मन्दिर में रंगोन टाईलें जड़ो हुई हैं। (भ० पार्श्वनाथ के मन्दिर में ध्यानस्त दि० सप्तऋषियों की प्रतिमा दर्शनीय है) उसके आगे स्नान घर की तरफ जाने का मार्ग है मार्ग में विश्राम स्थलऔर फिर आगे कूप उसी के पास भक्तजनो के स्नान करने का स्थान है । मुल मन्दिर के ठीक पीछे कोट में एक द्वार बना है उसमें से महाराणा सा० प्रवेश कर फीर एक छोटे द्वार में होकर दर्शनार्थ आते थे । उसके मागे जाने पर मन्दिर के उत्तरी भाग में मन्दिर के निरीक्षक एवम अन्य कर्मचारियों के कार्यालय बने है । ये कार्यालय १८७३ में कोट बनने के पश्चात बनाये गये है । इसके प्रागे एक ओर एक कोठरी हैं जिसमें मेला आदि अवसरों पर काम पाने वाला सामान रहता है
___ मन्दिर के चारों और पक्का कोट बना हुआ है । उत्तर दिशा में कोट के अन्दर लगे हए शिलालेख से ज्ञात होता है की मुलसंघ के बलात्कारगण के कमलेश्वर गोत्रीय गांधी श्रीविजयचन्द सागवाड़ा जाति दिगम्बर जैन ने वि० सं० १८६३ में बनवाया था ।
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