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श्री केशरियाजी के मन्दिर का मुख्य द्वार तीन खण्डो वाला है मानों यह बता रहा है कि भ० ऋषभदेव तीनों लोकों के स्वामी है । द्वार के दोनों ओर एक-एक छतरी स्वर्ण कलशों से सुसज्जित बनी हुई है । द्वार के प्रवेश करने पर दोनों ओर एक-एक पाषाण का हाथी खड़ा दिखाई देता है द्वार पर नौबतखाना बना है, जो कि कोट के साथ ही जुडा हुआ है । इसका निर्माण भी १८६३ में हो गया था।
-: निष्कर्ष के रुप में:
केशरियाजी का विशाल दिगम्बर जैन मन्दिर वि० सं० १४३१ में जीर्णोद्धत होकर १८८९ तक बनता रहा इसके पूर्व ईटों का साधारण जिनालय था, जिसे जीर्णोद्धार के पूर्व ५०० वर्ष से कुछ अधिक प्राचीन मानलें तो यह मन्दिर १२०० वर्ष पुराना प्रमाणित होता है ।
यह मन्दिर वैज्ञानिका ढंग में उत्तम कलाकारों द्वारा निर्मित हुआ है । पूर्व दिशा में उदय होते हुए भगवान भास्कर (सूर्य) की देदीप्यमान किरणें मूलनायक श्री ऋषभदेव के चरण कमलों की वन्दना करती जान पड़ती हैं । प्रातः सूर्य देव अपने स्वामी के दर्शन कर दिन का कार्यक्रम प्रारम्भ करता है । यह मन्दिर इस प्रकार का बना है कि नीचे प्रथम द्वार के बाहर से ही दर्शन होते हैं । इस प्रकार जो व्यक्ति नीचे से ही दर्शन करना चाहें, वे तीर्थ के अधिपति
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