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पावन भूमी पर बसने लगे। धुलेव ग्राम का विकास सूरजपोल द्वार से बाहर बड़ने लगा । और एक अच्छे से गाँव के रुप में दिखाई देने लगा।
गाँव का विकास 'कोयल' या वारिका नदी है वेष्ठित ऊँची पहाडी पर हुआ है । दर्शनार्थं आने वाले यात्रियों के लिये मन्दिर के पास में एक धर्मशाला बनवाई गई जिसे आजकल "जूना नोहरा". कहते है । गांव के विकास के साथ-२ दर्शनार्थ आने वाले यात्रियों में से दानी सज्जनों ने धर्मशाला के विस्तार में योग दिया। फल स्वरुप तोन चार धर्मशालाएँ बन गई । आज इन धर्मशाओं में यात्रियों के लिये सब प्रकार की सुविधाएँ बनी हुई हैं । आज तीर्थ की प्रगती होने से धुलेव गांव ने एक छोटे से कस्बे का रुप धारण किया। भगवान ऋषभदेव स्वामी का तीर्थ होने से गांव का नाम ऋषभदेव प्रसिद्ध हुआ। पोस्ट प्रांफिस में (रखबदेव) कहा जाता है । भगवान की प्रतिमा पर अधिक केशर चढने से बाद में गांव का नाम केशरियाजी भी कहा जाने लगा ।आजकल धुलेव ग्राम को केशरियाजी या ऋषभदेव कहते हैं ।
प्रारम्भ में धुलेव ग्राम स्वडक प्रान्त के जवास पटटे में था । बाद में जवास राव द्वारा केशरियाजी को भेंट कर देने से इसकी व्यवस्था काष्ठासघो के भट्टारकों द्वारा होने लगो। तत्पश्चात बहुत समय के बाद किसी कारणवंश यह व्यवस्था प्रौदीच्य जाति के ब्राह्मणो को मिली जो कि भण्डारी कहे जाते लगे । तदुपरांत किन्हीं विशेष कारणों से तीर्थ की देखभाल संवत् १९३२से उदयपुर [मेवाड़ के संरक्षण में चली गई । अतः मेवाड़ सरकार की एक कमेटी
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