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तीर्थ के महत्वपूर्ण अतिशय
(चमत्कार)
प्रथम तीर्थंकर भ० ऋषभदेव की प्रतिमा के इस क्षेत्र पर प्रकट होने के उपरांत अतिशय बढ़ने लगा और इसी अतिशय के कारण विशाल जिन मंदिर का निर्माण हुआ। मूलनायक भगवान के चरण कमलों में अति श्रद्धा रखने वाले तीर्थ के रक्षक देवों द्वारा समय समय पर आश्चर्य जनक चमत्कार हुए हैं । दशनार्थ आने वाले अनेक सज्जनों की मनोकामनाएं पूरा हुई है और अनेक दुःखी व्यक्तियों ने संङ्कटों से छुटकारा पाया हैं । भ० ऋषभदेव के प्रति भक्ति रखने वाले श्रद्धालुओं को अनेक विपत्तयों में सहायता हुइ हैं । अतः यह क्षेत्र अपने अतिशय के लिए विश्व विख्यात हो गया है, तीथ के चमत्कारों से न केवल जैन हो वरन् अन्य घर्मावलम्बी इस ओर सद्भावना से आकर्षित हुए हैं । इस विषय में श्री ओझा सा० ने अपने राजपुताना तथा मेवाड़ के इतिहास में लिखा है
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हिन्दुस्तान भर में यहो एक ऐसा मन्दिर है जहां दिगम्बर तथा श्वेताम्बर जैन, वैष्णव, शैव, भाल एवं तमाम शूद्र स्नान कर समान रूप से मूर्ति का पूजन करते हैं ।"
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