Book Title: Kesariyaji Rushabhdev Tirth Ka Itihas
Author(s): Motilal Marttand
Publisher: Mahavirprasad Chandanlal Bhanvra Jain

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Page 37
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -३५ . विषय में बाद में दिगम्बर तथा श्वेताम्बर दोनों समाजों के आपस में मुकदमें बाजी हुई और उसके लिए उदयपुर सरकार कि अोर से कमाशन बैठाया गया था जिसके निर्णय को मुख्यमुख्य बाते निम्न प्रकार है ( २ ) यद्यपि प्रारम्भ मे हो श्री ऋषभदेवजी का मन्दिर दिगम्बरी मन्दिर है किन्तु किर भी प्राचीन काल से यह हिन्दू जिसमें भील भी शामिल है तथा दूसरे जनों द्वारा पूजा जाता है। ( ३ ) दिगम्बरों और श्वेताम्बरों में किसी समाज को ध्वजादण्डरोहण की धार्मिक विधि करने से रोका गया हो यह सिद्ध नहीं हो सका है। (४) कोई भी दल जीर्णोद्धार प्रतिष्ठा या ध्वजारोहण करना चाहे तो उसे सर्व प्रथम देवस्थान महकमे से प्राज्ञा प्राप्त करनी होगी इस प्रकार निर्णय होने पर मन्दिर की देख भाल का कार्य मेवाड़ सरकार के देवस्थान महकमे द्वारा बहुत सावधानी पूर्वक ट्रस्टो के रुप में होने लगा। परिणाम स्वरुप दोनों समाज के संघर्ष से मन्दिर की देख भाल एक ट्रस्टी के रुप में राजस्थान सरकार के अन्तर्गत देवस्थान विभाग द्वारा हो रही है। यह तीर्थ सेल्फ सपोर्टिग (आत्म निर्भर ) माना गया है। ट्रस्टो की हैसियत से देवस्थान विभाग जैन समाज के प्रति उत्तरदायी है। पूजन विधान का कार्यक्रम निश्चित कर देने के समयानुसार चलता है। For Private and Personal Use Only

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