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१९८४ के हत्याकांड ने जैनियों की अहिंसा में कलंक लगा दिया। धर्म के लिए बलिदान होने वाले वोर शहीद तो मरकर भी अमर हो गये और उनके बलिदान ने तोर्थ के प्रारम्भिक इतिहास को सबके समक्ष स्पष्ठ रुप से प्रमाणित कर दिया कि यह तोर्थ दि० जैन ही है, इसमें कोई सन्देह नहीं यही कारण है कि उच्च न्यायालय जोधपुर में अभी ही दि० ४ जुलाई ६६ ई० को पब्लिक ट्रस्ट एक्ट के अन्र्तगत दि० जैन समाज ने रिट दायर कर अपने तीर्थ की रक्षार्थ स्तुत्य उद्योग किया है जो कि सर्वथा उचित हो है, परिणाम भी हितकर होगा ऐसी प्राशा हैं । अब इस प्रसंग पर अधिक चर्चा नहीं कर तीर्थ चमत्कार का वर्णन करें गें ।तीर्थ के चमत्कारों ने ही इस पावन क्षेत्र को भारत में विरूयात किया हैं और इसी कारण भो लाखों नर नारी प्रतिवर्ष दर्शनार्थं आकर अपने को धन्य मानते हैं।
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