Book Title: Kesariyaji Rushabhdev Tirth Ka Itihas
Author(s): Motilal Marttand
Publisher: Mahavirprasad Chandanlal Bhanvra Jain

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Page 26
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -२४ श्री केशरियाजी के सुखप्रद दर्शन का लाभ ले सकते है । भ० ऋषभदेव के अतिशय की कोति को चिरस्थाई रखने को प्रतिष्ठाचार्यों ने मूलनायक सहित चारों दिशाओं में भ० आदिनाथ को ही मूल प्रतिमाएं विराजमान की हैं । सभी प्रतिमाएं केशर युक्त ध्यानस्थ हैं । यह तीर्थ की एक विशेषता है वैसे भ० ऋषभनाथ को जहां भी मूर्तियां मिली हैं वै सब जटा-जुट युक्त केशो हौ चित्रित है । ये तीनों मुर्तियां भी ऐसी हो है जिनके कन्धों पर जटाये लहराती निखाउ गई हैं । क्योंकि प्राचीनकाल में ऋषभदेव की मूर्तियां जटायें सहित ही बनाई जाती थी । मूलनायक भगवान केशरियाजी की प्रतिमा पर भी लहराते केश दिखाई देते है किन्तु अतीव प्राचीन होने से कुछ मिट से गये हैं भगवान ऋषभ की सातिशय प्रतिमा नीस्सन्देह दिगम्बर जैन ही हैं जोकि ध्यान की प्रेरणा देती हुई दर्शकों का चित्त अनायास आकर्षित करती है । अखिल भारत में एक ऐसा मन्दिर है जिनका"समता में कोई भी मन्दिर नहीं है जो कि अपने ढग का निराला ही है For Private and Personal Use Only

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