Book Title: Kesariyaji Rushabhdev Tirth Ka Itihas
Author(s): Motilal Marttand
Publisher: Mahavirprasad Chandanlal Bhanvra Jain

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Page 23
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उन्हीं के उपदेशों से मन्दिर के अलग २ विभाग समय २ पर बने थे। उत्तर के जिनालयों के मध्य में जो मन्दिर है। वहां भी मूलसंघ भट्टारकों की गादो बनी हुई है। ऐसा ज्ञात होता है कि मन्दिर का उत्तरी भाग मूलसंघी तथा दक्षिणी भाग काष्ठासंघी भट्टारकों के अधिकार में था। इस समय उत्तर के मन्दिर के अग्रभाग में एक और केशर बिसने के 'पोरसिया' बने हुए है, जिनमें काफी केशर घिसी जाती है। दूसरी और आगे पर मन्दिरजी का प्राचीन भंडार है । मुख्य मन्दिर से दम सीढियां उतरने पर दो ताकों में विराजमान पदमावतीदेवी और चक्रेश्वरी देवी के दर्शन होते है । प्रवेश द्वार से बाहर आने पर काले पत्थर के दोनों प्रोर खडे दो हाथी दिखाई देते है। समस्त जिनालयों को घेरता हा जो मन्दिर का बाहरी भाग है, यद्यपि साधरण पत्थर का है तथापि वह भूमि से लेकर शिखरों तक अधिकांश स्थानों पर कूरा हसा है और उसमें स्थान २ पर सुन्दरता पूर्वक जिन प्रतिमाएं (खड्गासन) निर्मित है जो छोटे २ टोकों के मध्य विराजमान है चारों दिशाओं में उतंग चार शिखर तथा छोटे २ अनेक शिखर हैं । मध्य शिखर, जो कि मूलनायक पर बना है ध्वजा सहित मन्दिर की शोभा बढाता है। मूल मन्दिर के आगे तीन खण्ड का प्रवेश द्वार शिल्प कला से सजा हुआ है । समूचा भवन स्थापत्य कला का एक सुन्दर नमूना है । परिक्रमार्थ नीचे पत्थर जड़े हुए है। इस परिक्रमार्थ को वेष्ठित करती हुई और भी इमारते बनी हुई हैं। For Private and Personal Use Only

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