Book Title: Kesariyaji Rushabhdev Tirth Ka Itihas
Author(s): Motilal Marttand
Publisher: Mahavirprasad Chandanlal Bhanvra Jain

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Page 12
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -१० पुराना होना अनुमान करते हैं । इससे स्पष्ट है कि प्रतिमाजी इससे भी अतीव प्राचीन है । प्रतिमाजी की प्राचीनता के विषय में तो सभी एक मत है किन्तु इस क्षेत्र पर प्रकट होने के अनेक मनगड़न्त प्रमाण मिलते हैं जो कि इतिहास की पृष्ट भूमि पर सत्य प्रमाणित नहीं होते । जैसे कि : (१) लंका से श्री रामचन्द्र जी द्वारा भ० ऋषभदेव (केश) को प्रतिमा अयोध्या लाना और फिर उज्जैन पश्चात डुगरपुर राज्यातर्गत बडौदा गामको प्राप्त होना अनन्तर देवप्रयोग से धुलेवके नजदीक 'पगला' की जमीन में विराजमान रहना और फिर प्रकट होना आदि । (२) प्रतिमाजी को ब्राह्मण लाया, लपसी (सीरे) में रखी आदि-आदि । भली प्रकार विचार करने से यह प्रमाण ही सत्य प्रतीत होता है कि चांदनपुर महावोर एवम् बाड़ा पद्मप्रभू की भांति भगवान ऋषभ स्वामी की यह प्रतिमा भी धुलिया भोल द्वारा अपनी गाय के दूध झरने के द्रश्य को देखकर उसके स्वप्नानुसार भूगर्भ से प्रकट हुई है जैसा कि इस विषय में बाबू कामताप्रसादजी ने जैन तीर्थ ओर उनकी यात्रा पुस्तक के पृष्ठ १११ पर ठीक ही लिखा है : For Private and Personal Use Only

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