Book Title: Kesariyaji Rushabhdev Tirth Ka Itihas
Author(s): Motilal Marttand
Publisher: Mahavirprasad Chandanlal Bhanvra Jain

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Page 19
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org • -१७ मूल जिनालय के प्रथम प्रवेशद्वार पर भ. पार्श्वनाथ की प्रतिमा है। नौचोका के सामने सभा मण्डप है जिसमें छोटो सो वेदो बनो हुई है जिस पर मण्डप को रचना कर पूजन आदि पढ़ते हैं । रात्रि के समय मुख्य- २ प्रसंगों पर विशेष प्रकार की सजावट जमाकर भक्त लोग गाते हैं । मण्डप के दक्षिण भाग में श्रीमद्भागवत" लिखा हुआ एक प्रासन का चबूतरा हैं । वि० संवत् १९६६ के पहले यह स्थान माथुर सघी दि० भट्टारकों के शास्त्र पढ़ने को गद्दो के रुप में था । तत्पश्चात मन्दिर के हाकिम श्री तख्तसिंहजा ने मरम्मत कराने के बहाने भाद्र मास की एक ही रात में उस प्रकार का परिवर्तन कर दिया है । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir निज मन्दिर के चारों ओर ५२ जिनालय है । जिनमें सभी निग्रन्थ वीतराग जिन प्रतिमाएं विराजमान हैं इन जिना लयों के मध्य में ऊत्तर, दक्षिण और पश्चिम में एक-२ मण्डप सहित मन्दिर बना है, जिन पर सुन्दर शिखर बने हुए हैं । जिनमें केशयुक्त ध्यानस्था भ० आदिनाथ की मूल मूर्तियां विराजमान हैं । इन सब जिनालयों में फिर कर दर्शन - स्तवन करते हुए निज मन्दिर की परिक्रमा भी हो जाता है । इन्हो जिनालयों में पश्चिम की पक्ति में श्याम पाषाण का ६ फुट से ऊँचा एक स्तम्भ है जिस पर १००० जिन प्रतिमाएं विद्य मान है । अत: इसे सहस्त्रकूट चैत्यालय कहते हैं । पूर्व में निज मन्दिर के सामने ठीक बोचोबोच एक मध्यम कद का हाथी है जिस पर सं. १७११ वर्षे वैशाख सुदी ३ सोमे श्री ~ For Private and Personal Use Only

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