Book Title: Kesariyaji Rushabhdev Tirth Ka Itihas
Author(s): Motilal Marttand
Publisher: Mahavirprasad Chandanlal Bhanvra Jain

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Page 15
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -१३ -६तीर्थ का सुन्दर विशाल मन्दिर अपनी प्राचीन शिल्प कलासे सुसज्जित विशाल मन्दिर भ० केशरियाजी के दर्शनार्थ आने वाले मनुष्यों का मन मुग्ध कर लेता है। प्रादि ब्रह्मा भ० ऋषभदेव के अतिशय से ही इस मन्दिर ने साधारण जिनालय से विशाल रमणीय मन्दिर का रुप पाया है। अपनी प्रारम्भिक अवस्था में यह मन्दिर केसा था? इस विषय में जैन प्रभात मासिक वीर सं० २४४१ अंक ८ पृष्ठ ४०५ पर वर्णन हैं कि शिलालेखों से पता चलता हैं कि यह मन्दिर संवत् २(दूसरी शताब्दी) में कच्ची ईटों का बना था । बाद आठवीं शताब्दी में पारेवा नाम के पत्थर का बना और (पश्चात् सं० १४३१ में पुख्ता पत्थर का बनवाया गया आदि । किन्तु दूसरी शताब्दी में मन्दिर होने का कोई शिलालेख प्राप्त नहीं हुआ है । तथापि मन्दिर के खेला मण्डप में सबसे प्राचीन वि० सं० १४३१ का शिलालेख लगा हुआ है जिसमें मन्दिर का जीर्णोद्धार का स्पष्ट वर्णन है । जिससे यह प्रमाणित होता है कि स० १४३१ के पूर्व भी पुराना मन्दिर था । कहा जाता है की भगवान की प्रतिमा इस क्षेत्र पर प्रकट होने पर सर्व प्रथम ईटों का मन्दिर बनवाया गया था तत्पश्चात उस जिना लय के टूट जाने पर जोर्णोद्धार रुप पाषाण का यह नया मन्दिर भिन्न-२ विभागों से अलग-२ समय में बनकर तैयार हुआ है । इसके प्रमाण में खेला मण्डप का दूसरा शिलालेख तथा प्रतिमाओं पर लिखे गये लेखों से वर्णन मिलता है । For Private and Personal Use Only

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