Book Title: Kasaypahudam Part 04
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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थ्यात्वको स्थिति नियमसे अनुत्कृष्ट होती है जो अपनी उत्कृष्ट की अपेक्षा अन्तर्मुहूर्त कमसे लेकर एक स्थिति तक होती है। मात्र इनको अन्तिम जघन्य स्थितिकाण्डककी अन्तिम फालिको इन सन्निकर्ष विकल्पों मेंसे कम कर देना चाहिए। सोलह कषायोंकी नियमसे अनुत्कृष्ट स्थिति होती है जो अपनी उत्कृष्ट की अपेक्षा एक समय कमसे लेकर एक आवलि कम तक होती है। पुरुषवेदकी स्थिति नियमसे अनुत्कृष्ट होती है जो अन्तर्मुहूर्त कमसे लेकर अन्तःकोड़ाकोड़ी सागर तक होती है। हास्य और रतिको स्थिति उत्कृष्ट भी होती है और अनुत्कृष्ट भी होती है। स्त्रीवेदके बन्धके समय हास्य और रतिका बन्ध होता है तो उत्कृष्ट होती है, अन्यथा अनुत्कृष्ट होती है जो अपनी उत्कृष्टकी अपेक्षा एक समय कमसे लेकर अन्तःकोड़ाकोड़ी सागर तक होती है। अरति और शोककी स्थिति उत्कृष्ट भी होती है और अनुत्कृष्ट भी होती है। स्त्रीवेदके बन्धके समय । इनका बन्ध होता है तो उत्कृष्ट होती है, अन्यथा अनुत्कृष्ट होती है जो अपनी उत्कृष्टकी अपेक्षा एक समय कमसे लेकर पल्यका असंख्यातवाँ भागकम बीस कोड़ाकोड़ी सागर तक होती है। नपुंसकवेदकी स्थिति नियमसे अनुत्कृष्ट होती है जो एक समय कमसे लेकर पल्यका असंख्यातवाँ भाग कम बीस कोड़ाकोड़ी सागर तक होती है । भय और जुगुप्साकी स्थिति नियमसे उत्कृष्ट होती है । पुरुषवेदकी उत्कृष्ट स्थितिको मुख्य करके इसी प्रकार सन्निकर्ष जानना चाहिए । हास्य और रतिकी उत्कृष्ट स्थितिको मुख्य करके भी इसी प्रकार सन्निकर्ष जानना चाहिए । मात्र इसके स्त्रीवेद और पुरुषवेदकी अनुत्कृष्ट स्थिति अपनी उत्कृष्ट स्थितिकी अपेक्षा एक समय कम आदि न होकर अन्तर्मुहूर्त आदि कम होती है। कारणकी जानकारीके लिए पृष्ठ ४७३ देखो।
नपुंसकवेदकी उत्कृष्ट स्थितिवाले जीवके मिथ्यावकी स्थिति उत्कृष्ट भी होती है और अनुत्कृष्ट भी होती है । अनुत्कृष्ट स्थिति अपनी उत्कृष्टकी अपेक्षा एक समय कमसे लेकर पल्यके असंख्यातवें भागतक कम होती है । सम्यक्त्व और सम्याग्मथ्यावत्की स्थिति नियमसे अनुत्कृष्ट होती है, जो अन्तर्मुहूर्त कमसे लेकर एक स्थिति तक होती है । सोलह कषायोंकी स्थिति उत्कृष्ट भी होती है और अनुस्कृष्ट भी होती है। अनुत्कृष्ट स्थिति एक समय कमसे लेकर एक आवलि कम तक होती है। स्त्रीवेद और पुरुषवेदकी स्थिति नियमसे अनुत्कृष्ट होती है जो अपनी उत्कृष्टकी अपेक्षा अन्तर्मुहूर्त कमसे लेकर अन्तःकोड़ाकोड़ी सागर तक होती है । हास्य और रतिकी स्थिति उत्कृष्ट भी होती है और अनुत्कष्ट भी होती है बो अपनी उत्कृष्टकी अपेक्षा एक समय कमसे लेकर अन्तःकोड़ाकोड़ी सागर तक होती है। अरति और शोककी स्थिति उत्कृष्ट भी होती है और अनुत्कृष्ट भी होती है । अनुत्कृष्ट स्थिति अपनी उत्कृष्टकी अपेक्षा एक समय कमसे लेकर पल्यका असंख्यातवाँ भागकम बीस कोड़ाकोड़ी सागर तक होती है। भय और जुगुप्साकी स्थिति नियमसे उत्कृष्ट होती है। इसी प्रकार अरति, शोक, भय और जुगुप्साकी उत्कृष्ट स्थितिको मुख्य करके सन्निकर्ष जानना चाहिए । यहाँ जो विशेषता है उसे ४८३ पृष्ठसे जान लेनी चाहिए।
___मिथ्यात्वकी जघन्य स्थितिवालेके अनन्तानुबन्धीचतुष्कका सत्व नहीं होता, क्योंकि दर्शनमोहनीयकी क्षपणाके समय मिथ्यात्वकी जघन्य स्थिति होती है और अनन्तानुबन्धीकी इससे पूर्व विसंयोजना हो जाती है। शेष कर्मों की स्थिति नियमसे अजघन्य असंख्यातगुणी अधिक होती है। सम्यक वकी जघन्य स्थितिवालेके मिथ्यात्व, सम्यग्मिथ्यात्व और अनन्तानुबन्धीचारकी सत्ता नहीं होती। शेष कर्मों की अजघन्य असंख्यातगुणी स्थिति होती है। सम्यग्मिथ्यात्वकी जघन्य स्थितिवालेके मिथ्यात्व, सम्यक्त्व और अनन्तानुबन्धीचारकी सत्ता है भी और नहीं भी है। उद्वेलनाके समयसम्यग्मिथ्या वकी जघन्य स्थितिवाले जीवके सम्यक्त्वकी सत्ता नहीं है शेषकी है और क्षपणाके समय सम्यग्मिथ्यात्वकी जघन्य स्थितिवालेके मिथ्यात्व और अनन्तानुबन्धीचारकी सत्ता नहीं होती, सम्यक्वकी होती है। जब इनकी सत्ता होती है तो इनकी नियमसे अजघन्य असंख्यातगुणी होती है । इन छह प्रकृतियोंके सिवा शेष प्रकृतियोंकी नियमसे अजघन्य असंख्यातगुणी स्थिति होती है।
अनन्तानुबन्धी क्रोधकी जघन्य स्थितिवालेके मिथ्यात्व आदि सब प्रकृतियोंकी नियमसे अजघन्य असंख्यातगुणी स्थिति होती है। मात्र अनन्तानुबन्धी मान आदि तीनकी जघन्य स्थिति होती है। इसी प्रकार
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