Book Title: Kasaypahudam Part 04 Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri Publisher: Bharatiya Digambar SanghPage 14
________________ ( ८ ) बालोंका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर साधिक चौबीस दिन-रात है, क्योंकि सम्यक्त्वको प्राप्त होनेवालोंका और सम्यक्त्वसे मिध्यात्वमें जानेवाले जीवोंका उत्कृष्ट अन्तर साधिक चौबीस दिन-रात है, इसलिए यह उत्कृष्ट अन्तर उक्त कालप्रमाण कहा है। तीन संज्वलन और पुरुषवेदकी जघन्य स्थितिवालोंका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर साधिक एक वर्ष है, क्योंकि इन प्रकृतियोंके उदयसे इतने काल के अन्तरसे क्षपकश्रेणिपर आरोहण करना सम्भव है । लोभसंज्वलनकी जघन्य स्थितिवालोंका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर छह महीना है, क्योंकि क्षपकश्रेणिका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर छह महीना है । स्त्रीवेद और नपुंसकवेदकी जघन्य स्थितिवालोंका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तरसंख्यात वर्ष है, क्योंकि इन वेदवालोंका इतने कालके अन्तरसे क्षपकश्रेणि पर आरोहण करना सम्भव है । इन सब प्रकृतियोंकी अनघन्य स्थितिवालोंका अन्तर काल नहीं है यह स्पष्ट ही है । गति आदि मार्गणाओं में अपनी अपनी विशेषता जानकर यह अन्तरकाल ले आना चाहिए । सन्निकर्ष----मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट स्थितिवाले जीवके सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी सत्ता होती भी है और नहीं भी होती । यदि अनादि मिथ्यादृष्टि जीव हैं या जिन्होंने इन दोनोंकी उद्वेलना कर दी है उनके सत्ता नहीं होती, शेष जीवोंके होती है । जिनके सत्ता होती है उनकी इनकी स्थिति नियमसे अनुत्कृष्ट होती है, क्योंकि मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट स्थिति मिथ्यात्व गुणस्थान में होती है और इनकी उत्कृष्ट स्थिति वेदकसम्यक्त्वकी प्रासिके प्रथम समय में होती है, इसलिए मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट स्थितिवाले जीवके इन दोनोंकी उत्कृष्ट स्थितिका निषेध किया है । इनकी अनुत्कृष्ट स्थिति भी अन्तर्मुहूर्त कम अपनी उत्कृष्ट स्थितिसे लेकर एक स्थितिपर्यन्त होती है । कारण स्पष्ट है । इतनी विशेषता है कि अन्तिम जघन्य उद्वेलनाकाण्डककी अन्तिम फालिमें जितने निषेक होते हैं उतने मिध्यात्वकी उत्कृष्ट स्थिति के साथ इन दोनों प्रकृतियोंकी अनुत्कृष्ट स्थिति के सन्निकर्ष विकल्प नहीं होते । मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट स्थितिवाले जीवके सोलह कषायोंकी उत्कृष्ट स्थिति भी होती है और अनुत्कृष्ट स्थिति भी होती है यदि मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करते समय सोलह कषायों की उत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करता है तो उत्कृष्ट स्थिति होती है, अन्यथा अनुत्कृष्ट स्थिति होती है जो अपनी उत्कृष्ट स्थितिकी अपेक्षा कमसे कम एक समय और अधिक से अधिक पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण कम होती है । स्त्रीवेद, पुरुषवेद, हास्य और रतिकी नियमसे अनुत्कृष्ट स्थिति होती है, क्योंकि उस समय इनका बन्ध नहीं होता जो अपनी उत्कृष्ट स्थितिकी अपेक्षा कमसे कम अन्तर्मुहूर्त कम होती है और इस प्रकार उत्तरोत्तर कम होती हुई इनकी अनुत्कृष्ट स्थिति अन्तःकोड़ाकोड़ी प्रमाण तक प्राप्त हो सकती है। मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट स्थिति के समय शेष पाँच नोकषायों की स्थिति उत्कृष्ट भी होती है और अनुत्कृष्ट भी होती है । यदि उस समय सोलह कषायोंकी उत्कृष्ट स्थितिका बन्ध होकर एक आवलि कम उसका पाँच नोकषायों में संक्रमण हो रहा है तो उत्कृष्ट स्थिति होती है, अन्यथा अनुत्कृष्ट स्थिति होती है जो अपनी उत्कृष्ट स्थितिकी अपेक्षा एक समय कमसे लेकर पल्यका असंख्यातवां भाग कम बीस कोड़ाकोड़ी सागर तक सम्भव है । इस प्रकार मिथ्यात्वको उत्कृष्ट स्थितिको प्रधान करके सन्निकर्षका विचार किया । । सम्यक्त्वकी उत्कृष्ट स्थितिवाले के मिथ्यात्वकी स्थिति नियमसे अनुत्कृष्ट होती है जो अपनी उत्कृष्ट स्थितिकी अपेक्षा अन्तर्मुहूर्त कम होती है । उस समय सम्यग्मिथ्यात्व की स्थिति नियमसे उत्कृष्ट होती है । कारण स्पष्ट है । सोलह कषाय और नौ नोकषायों की स्थिति नियमसे अनुत्कृष्ट होती है जो अपनी उत्कृष्ट स्थितिकी अपेक्षा अन्तर्मुहूर्त कमसे लेकर पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण कम तक होती है । सम्यग्मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट स्थितिको मुख्य करके इसी प्रकार सन्निकर्ष विकल्प जानना चाहिए। मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट स्थितिको मुख्य करके पहले सन्निकर्ष कह आये हैं उसी प्रकार सोलह कषायोंकी उत्कृष्ट स्थितिकी अपेक्षा सन्निकर्ष जानना चाहिए । स्त्रीवेदकी उत्कृष्ट स्थितिवालेके मिध्यात्वकी स्थिति नियमसे अनुत्कृष्ट होती है जो अपनी उत्कृष्ट की अपेक्षा एक समय कमसे लेकर पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण कम तक होती है । सम्यक्त्व और सम्यग्मि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
1 ... 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 ... 376